उन 49 फिल्मी भांडो को जवाब
#सनातनी का
2 नवम्बर 1984 , इंदिरा गाँधी की हत्या का दूसरा दिन, दिल्ली के इंद्रलोक इलाके में एक सरदार जी का घर दर्जनों कांग्रेसी गुंडो ने घेरा हुआ था . लोहे का गेट तोड़ने की कोशिश जारी थी। सरदार जी और उनकी पत्नी असहाय होकर भीड़ से वापस जाने की विनती कर रहे थे लेकिन कांग्रेसियों के सर पर खून सवार था, सामने साक्षात मौत देखकर सरदार जी की दोनों बेटियों ने बंदूक लेकर छत से मोर्चा सम्भाला। पहले हवाई फायर के बाद घर में घुसने की कोशिश कर रहे है .. कुछ लोगों को निशाना बनाया। कुछ ही देर में गोलियाँ ख़त्म हो गई लेकिन भीड़ ख़त्म नही हुई, उसके बाद भीड़ ने घर में घुसकर चारों को मार डाला, घर में लूटपाट कर आग लगा दी.. .. और हाँ ..बेटियों को नोचने के बाद मारा।
ऐसे ही देवास में एक सिख फैमिली की 'खनूजा स्पोर्ट्स' नाम की दूकान है. इनके परिवार के लोग अमृतसर 'स्वर्ण मंदिर' गये हुए थे मत्था टेकने, तभी इंदिरा गाँधी की हत्या हो गई। दिल्ली रेल्वे स्टेशन पर कांग्रेसी गुंडो की भीड़ जब ट्रेनो में भी सरदारों को ढूँढ ढूंढकर मार रहे थे तब ये परिवार भी उसी ट्रेन में था। 4 दिन बाद लाशें आयी थी वापस और इधर देवास में गुंडो ने इनकी दूकान लूटकर आग लगा दी थी।
इंदौर में कांग्रेसी विधायक ललित जैन ने भीड़ लेकर इंदौर की विरासत, इंदौर की पहचान 'राजवाडे' को ही जलाकर खाक कर दिया।
1984 में देश भर में कांग्रेसी गुंडो की भीड़ द्वारा लूटी गई दुकानों का आजतक हिसाब नही हुआ और ना ही अनगिनत लाशों का।
इसे कहते है .. "मॉब लिंचिंग"
तुम जो मुद्दा उठा रहे है उसे मॉब लिंचिंग नही 'र* रोना' बोलते है। पहले अपने गिरेबान में तो झाँक लो .. फिर तुम्हें समझ में आयेगा कि भीड़ को भड़काना किसे कहते है और आपसी झगडे किसे कहते है.....
और हाँ मरते दम तक मुख से एक ही नाम निकलेगा
#जय श्रीराम