सुनो मै जब तक जिंदा रहूँगा
स्वतंत्र आसमान का परिन्दा रहूँगा।
कभी इंसानियत पर था गुमान मुझे भी
मगर अब इंशानियत पर शर्मिंदा रहूँगा।
सुनो मै जब तक जिंदा रहूँगा................
तुम्हे होगा गुमान अपने इंशान होने पर
मै प्रेम का पंक्षि हूँ प्रेम मार्ग का ही चुनिंदा रहूँगा।
तुम्हे रहना है सरहदों मे ये तुमने ही बनाये हैं
ये जमीं आस्माँ मेरा है मै सारे जहाँ का बासिंदा रहूँगा।
सुनो मै जब तक जिंदा रहूँगा.................
ये काशी और काबा सभी धाम ही मेरे है
वो मक्केश्वर भी मेरा है ये राम भी मेरे है।
भले ही कुत्तर दो तुम पंख मेरे,अंत तक यही कहूँगा