एक पवित्र व्यास पीठ पर बैठकर रामकथा के नाम पर अली मौला, या हुसैन का जाप करता है और मोहम्मद की करुणा जैसी कथा करता है।
दूसरी व्यास पीठ पर बैठकर नमाज की महिमा का बखान करती है।
यह बात तो समझ आती है कि पेट्रोडालर की खनक नें इन जैसे सभी कालनेमियों की दोस्ती भी करा दी , सुर और ताल भी मिला दिये।
किंतु क्या आप जानते हैं कि,
रामकथा में घालमेल की शुरुआत करने वाला पहला कालनेमि कौन था ?
"विश्व का सबसे सफल पाखंडी मोहनदास गांधी"
जी हाँ !
उन्होने ही "रघुपति राघव राजाराम" में "ईश्वर, अल्लाह तेरो नाम" घुसा दिया था।
अगर हमारे पूर्वजों ने तब गांधी के पाखण्ड को पहचान लिया होता, डटकर विरोध किया होता तो आज चित्रलेखा, मोरारी लाल जैसे कालनेमियों को सेक्युलरिज्म का सुलेमानी कीड़ा न काटता।