सन्जीव मिश्र's Album: Wall Photos

Photo 50 of 1,617 in Wall Photos

हमारे एक मित्र हैं ।
उनका नाम है श्री राकेश झुनझुनवाला ........
ऊपी में उनको मारवाड़ी समाज का माना जाता है ।
पर सत्य यह है कि वो मारवाड़ नही बल्कि राजस्थान में शेखावाटी के मूल निवासी हैं ...... दिल्ली हरियाणा से लगे हुए राजस्थान के चूरू , सीकर , झुंझुनू इत्यादि जिले शेखावाटी कहलाते हैं । इसी झुंझुनू जिले के लोग जब बिजनिस व्यापार के लिए शेखावाटी से निकल के पूरे देश मे फैल गए तो लोग इनको झुंझुनूवाला बोलने लगे और फिर धीरे धीरे यही झुनझुनवाला हो गया ........
आज से कोई 100 - 200 साल पहले राजस्थान के लोग जिनमे ज़्यादातर व्यापारी वैश्य समुदाय के थे , राजस्थान के सूखे बियाबान मरुस्थल से निकले और पूरे देश दुनिया में फैल गए ....... अब इनका नाम मारवाड़ी क्यों पड़ा ये जानकर लोग ही बता पाएंगे , शायद सबसे पहले निकलने वाले लोग मारवाड़ ( जोधपुर , बाड़मेर , जालौर ,पाली इत्यादि जिले ) से निकले होंगे सो नाम मारवाड़ी पड़ गया ........
यदि आप घूमने फिरने पर्यटन के शौकीन हैं तो आपको राजस्थान की वास्तुकला - Architecture देखने के लिए शेखावाटी जाना चाहिए । पूरे इलाके में आपको भव्य मंदिर , धर्मशालाएं , शानदार महलों जैसे हवेलियां , बावड़ियां , कुएं , प्याऊ , पोल यानी दरवाजे देखने को मिलेंगे ........ पूरे राजस्थान में ऐसे हज़ारों लाखों शानदार भवन मिल जाएंगे जो वास्तुकला के बेजोड़ नमूने हैं .......
उन भवनों को देख के आपको ये आभास होगा कि हमारा मरु प्रदेश कितना वैभवशाली था / है ........

मेरे मित्र को बनारस आये 100 साल से ज़्यादा हो गए पर उनकी हवेली आज भी झुंझुनू में मौजूद है , उनके दादा जी का बनाया एक भव्य मंदिर है , बावड़ी है , धर्मशाला है ....... आज भी उनके परिवार के बच्चों का मुंडन उसी मंदिर में होता है ....... राजस्थान छोड़े बेशक़ 100 साल हो गए पर परिवार में आज भी मारवाड़ी ही बोली जाती है ........

देश भर के सारे बिजनिस व्यापार का लेखा जोखा अगर निकालेंगे तो ये मारवाड़ी समुदाय भारत का सर्वाधिक सम्पन्न समुदाय है पर इसके बावजूद ये बड़ा Simple, सामान्य जीवन जीते हैं , ज़्यादातर शाकाहारी हैं .......

अगर कोई मारवाड़ी अपने बाप दादाओं पुरखों के वैभवशाली अतीत की बात करे तो उसकी बात ध्यान से सुनिये । इनका अतीत भी वैभवशाली था जो इनकी महल जैसी हवेलियों से दिखता है और इनका वर्तमान भी वैभवशाली है ....... राजस्थान की हवेलियों से निकल के ये लोग झुग्गी में रह के पंचर नही साट रहे ।

एक तरफ हमारा मारवाड़ी समाज है दूसरी तरफ ये पंचर साटने वाले हैं जो हमको ये ज्ञान देते हैं कि इन्ने यहां ताजमहल और लालकिला बनवाया , वास्तुकला ले के आये ......... अबे तुमाए अब्बू को रेगिस्तान में झोपड़ी नसीब न हुई ....... साले , 1400 साल तक तुम कच्चे मिट्टी के एक एक कमरे वाले झोपड़े बना के रहते थे .....
तुमाए अब्बू ने जिनगी में सूता साहुल नही देखा था , उनकी बनाई एक भी दीवार सीधी नही बनी है ....... न सीधी खड़ी है ....... तुमाए अब्बू के झोपड़े में एक भी खिड़की नही ....... यहाँ साले को रेगिस्तान में ऐसे ऐसे महल हैं जिनकी खिड़की और Pillar तुम नही गिन सकते ।

ताजमहल और लालकिला हमारे पैसे से , हमारे material से हमारे Engineers , Architects , कारीगरों मजदूरों ने बनाये .......
झोपड़ी वालों को महलों की डींगें नही मारनी चईये ।