दिल्ली की सड़कों पर कई मध्ययुगीन कब्रें फटेहाल पड़ी हुई है, इसमें से एक रजिया की भी है । कैथल में बंदी बनाकर दिल्ली की गलियों में घसीटकर उसकी हत्या की गई ।
रजिया बहुत ही सुंदर महिला थी, अल्तमश की यह पुत्री इस्लामी साहित्यों के जन्नत के हूर की कल्पना से बिल्कुल कम नही थी, लेकिन भेड़ियों से भरे मुस्लिम दरबार मे उसकी जवानी सहज प्राप्य थी। जोरो से चलते मशीन के पट्टे में वह बुरी तरह फंस गई । कुछ ही पलों में रजिया राजगद्दी में गेंद की भांति ऊँछाल फेंक दी गयी । पुरानी दिल्ली के तुर्कमान गेट के एक फर्लांग भीतर एक कब्रिला ढेर है, इसी के निचे रजिया गड़ी पड़ी है ।
सुल्तानों की गद्दी के दावेदार बहुत होते थे । गुलाम, भतीजे, भाई, भौजाई, अंगरक्षक, चाचा, चाचियां, दादियां, पुकार माँ, धाय माँ , रसोइए ,खोजे पदचर ओर मंत्री ही नही, वेश्याओं ले दलाल भी इस दंगे में शामिल होते थे ।
दिल्ली में अल्तमश के बाद उसका बेटा रुकुनुद्दीन गद्दी पर बैठा, वह भी कट्टर इस्लामी ही था, इतिहास में उसकी बड़ी तारीफ की गई है, लेकिन आगे ही यह लिखा भी आ जाता है, की वह हिंदुओ के धन को महफिलों में उड़ाना लगा ।। स्पष्ठ है, अन्य मुसलमान सुल्तानों से यह भी अलग नही था । लेकिन इसके ही भाई की नजर पूरे भारत पर पड़ गयी, ओर उसने अवध वर्तमान up के अयोध्या लखनऊ की तरफ से विद्रोह कर दिया ।
इसी विद्रोह को दबाने रुकुनुद्दीन विशाल सेना लेकर चला, यहां रुकनुद्दीन की अनुपस्थिति का लाभ उसकी पोषय बहन रजिया ने उठाया । रजिया में राजगद्दी भोग करने की तीव्र इच्छा जाग उठी । सहायता के लिए कुछ गुलाम, जो उसके चारों ओर चक्कर काटते रहते थे , उनकी नजर शाही गद्दी ओर शाही जवानी दोनो पर थी ।
दरबार के धूर्त ओर कामुक मुस्लिम गिरोह नेताओ के लिए रजिया की बूढ़ी माँ तो बेकाम थी, सो उसका कत्ल कर दिया गया ।
1236 में रजिया गद्दी पर बैठ गयी, यह एक बहन का भाई के विरुद्ध खुला विद्रोह था ।गद्दी से दूर सुल्तान को बंदी बनाने के लिए उसने सेना भेज दी, जिस माह उसे बंदी बनाकर लाया गया, उसी माह उसकी मृत्यु हो गयी । इससे स्पष्ठ प्रतीत होता है कि रजिया ने बड़े ठंडे तरीके से उसकी हत्या करवा दी, ताकि ना रहेगा बांस, ओर ना बजेगी बांसुरी ।।
मुस्लिम चाटुकार इतिहासकारो ने इन जंगली बर्बर पशुओं के इतिहास को थूक से रगड़ रगड़ कर चमकाया है । तबकात ए नासिरी कहता रजिया के जीवन चरित्र की विस्मिल्लाह करता है, झूठ का ढिंढोरा पीटकर वे रजिया की गुलामी आवाज में आरती उतारते है, " एक महान साम्रगी, बुद्धिमती ओर उदार, प्रजारक्षक, आदि इत्यादि ...
मगर आप ऊपर पढ़ चुके है, षड्यंत्र करने में रजिया अन्य मुसलमान नेताओ से एकदम कम नही थी, उसके हाथ अपने भाई के खून से रंगे थे।
कुछ लोग कहते है कि रजिया में अल्तमश ने नेता का गुण पाया था, ओर वह चाहता था कि रजिया सुल्तान बने। यह बकवास है, एकदम कोरी बकवास ।। इस गप्प को रज़िया के गद्दीनशीन होने के बाद गढ़ा गया है । चापलूस दरबारियों ने इसे लिखा है, क्यो की मर्दांग्नि के अभिमान ने उन्हें चोली सरकार के आगे सिर झुकाना मंजूर नही था । खुद वजीरे आजम निजाम उल मुल्क जुनैदी ने रजिया को सुल्तान नही माना । उसने रुकनुद्दीन का विद्रोह करने वाले अन्य अधिकारियों के साथ मिलकर संग्राम छेड़ दिया । लोग देश के विभिन्न भाग से आकर दिल्ली में जमा होने लगे ।
रजिया की गद्दीनशिनी से अवध के नसीरुद्दीन ने अपनी उन्नति का स्वपन देखा । तुरंत सेना बटोरकर दिल्ली जा पहुंचा । बहाना बड़ा सुंदर था, मुसीबत में रजिया की सहायता करना । इरादा था गद्दी ओर गद्दीवाली दोनो को हथियाना । चाल बड़ी चालू थी, ओर पुरजोर थी, लेकिन विरोधियों ने उसे पकड़कर मौत की नींद सुला दिया ।।
मुस्लिम दरबारियों को अपनी ओर करने के लिए रजिया को अपनी जवानी का सौदा भी करना पड़ा ।
भटिंडा पंजाब की ओर से रजिया के विरुद्ध विद्रोह हुआ, यह अपनी सेना लेकर आगे बढ़ी । लेकिन हार गई, अब यह विद्रोही बागी शाशक अल्तुनिया के कब्जे में थी, अल्तुनिया ने जी भरकर रजिया का बलात्कार किया। । मुस्लिम इतिहासकारो ने इसे शादी का फतवा दिया । अपने ही कामुक जाल में फंसी रजिया अल्तुनिया के साथ सेना लेकर दिल्ली चल पड़ी ।।
यहां दिल्ली में मैनुद्दीन खुद को सुल्तान घोषित कर बैठा, अल्तुनिया ओर रजिया की मिश्रित सेना इसे रौकने के लिए आगे बढ़ी लेकिन हार गई । अब रजिया का सूर्य अस्त होने को था, उसके सारे साथियों ने उससे कन्नी काट ली, अब गंजेड़ी यार किसका ? कस लगाया और खिसका ..
अल्तुनिया ओर रजिया जब फटेहाल में भटक रहे थे, थे तो किसी विद्रोही सैनिक ने उसकी हत्या कर दी ।
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