Sushil Chaudhary's Album: Wall Photos

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भारतीय "उदुम्बरा (गूलर) वृक्ष" के पुष्प का ज्योतिषीय,वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व।

भारतीय गूलर के पुष्प का कहावत पूर्णतया सत्य है जिसका प्रमाण है इस लेख के साथ प्रस्तुत किया उसका अद्भुत चित्र।यदि,हम इस कहावत का पड़ताल करें तो हर रहस्य धर्म और भारतीय ज्योतिष शाश्त्र का प्रमाणित हो जाता है। हम सभी जानते है की धर्म और ज्योतिष से सम्बंधित बातें आधुनिक विज्ञान के लिए एक भ्रम के अतरिक्त और कुछ नहीं होता है। इसलिए अस्तित्वतः प्रमाणित हो जाने के बाद भी भारतीय गूलर का पुष्प आधुनिक विज्ञान के लिए एक भय का कारन बना हुआ है । इस अद्भुत पुष्प का सत्यता यदि प्रमाणित हो जाता है तो,वह विज्ञान के लिए एक नया सर दर्द बन जाएगा क्योंकि इसकी उत्पत्ति कब और कैसे होती है यह जानना उतना ही कठिन है जितना कठिन "कालान्तर में रह कर काल को देख सकना है"।

धर्म के प्राचीन ग्रंथो का मानना है की यह पुष्प ३००० वर्ष में एक बार खिलता है इसलिए यदि इस पुष्प की सत्यता प्रमाणित हो जाती है,तो धर्मानुसार सोंचे तो पाएंगे की दूसरे पुष्प की प्रतीक्षा करते करते आधुनिक विज्ञान का युग ही समाप्त हो जाएगा अतएव यह पुष्प विज्ञान के परे होने के कारन विज्ञान के लिए एक किम्दन्तीय आज भी है जबकी इसका असल चित्र हमने कई बार संसार के सम्मुख रख दिया है।

इस पुष्प का वर्णन उत्तर भारत के कहावतों में मिलने का क्या रहस्य है?
इस पुष्प का वर्णन और प्रशंशा उत्तर भारत(कपिलवस्तु लुम्बिनी नेपाल) में जन्म लिए भगवन श्री महाविष्णु के नवे बुद्ध अवतार द्वारा बुद्धिष्ट लोटस सूत्र में क्यों मिलता है?
इस पुष्प का रहस्य क्या है?

इन प्रश्नो का उत्तर जानने के लिए पहले हमे इस पुष्प के ज्योतिषीय महत्व को जानना पड़ेगा। यह अद्भुत पुष्प हर भांति से भारतीय ज्योतिष शाश्त्र के सत्यता का पूर्ण परिचायक ही नहीं बल्कि धर्म के रक्षा लिए भगवान के दृढ़ निश्चय और उनके संकल्प का भी अद्भुत प्रमाण है।

भारतीय वैदिक ज्योतिष ग्रहों की चाल और नक्षत्रो के फलों का समावेश कर भविष्य को प्राचीन समय से आज तक कहता आया है।वैदिक ज्योतिष में ग्रहो को देवता भी कहते है और सभी प्रमुख सात देवताओ को तत्वाधिपति कहतें है। जो पांच तत्वों के अधिपति है और ग्रह रूप में सर्पिल मार्ग अर्थात कुण्डलिकार पथ पर ब्रह्माण्ड में भ्रमण करते है। भारतीय ज्योतिष पृथ्वी को ब्रह्माण्ड का केंद्र मनाता है और ग्रहों को पृथ्वी के १२ भावो में पार्वतित होता देखता है।जो गूलर का फूल हमने प्रस्तुत किया है वह पूर्ण कुण्डलिकार या कहें तो सर्पिल है और यह गूलर अर्थात उदुम्बरा के वृक्ष के सबसे ऊँचे डाली से उतपन्न एक विशेष सर्पिल शाखा पर खिला था। विशेष सर्पिल शाखा से २७ अन्य सर्पिल शाखा उतप्पन होते हैं जिसमे प्रत्येक सर्पिल शाखा के ऊपर एक नाग के मुख के भांति चौड़ी पुष्प की पत्ती रहती है जो नव भागो में बटीं रहती है।एक मुख्य सर्पिल शाखा से निकलने वाली सत्ताईस अन्य सर्पिल शाखाएं सत्ताईस नक्षत्रो को सम्बोधित करतें है। उनपर खिलने वाले हर एक पत्तों के नव भाग हर राशि के नव नक्षत्र चरणों को व्यक्त करतें है। १२ राशियों के १०८ नक्षत्र चरण होते हैं और इस पुष्प में १०८ पत्ते ही जान पड़ते है परन्तु वास्तविकता ये है,की, एक ही पत्ते में ९ पत्तिया आपस में जुड़े रहकर भी अलग अलग ऊपर से होकर सर्प सा प्रतीत होते है।

इससे यह प्रमाणित हो जाता है की ३००० वर्ष में नहीं बल्कि जब सूर्य २७०० बार १०८ नक्षत्र चरणों का भ्रमण पूरा कर लेता है तब यह उदुम्बरा अर्थात गूलर का पुष्प खिलता है। इस पुष्प के खिलने पर पिछले २७०० वर्षो में जो कुछ उत्पन्न हुआ है वह सब परिवर्तित होने लगता है और नया २७०० वर्ष का चरण प्रारम्भ हो जाता है अर्थात ये पुष्प यह भी बताता है की कलियुग के २७०० वर्ष के ४ चरण होतें है और कलियुग का पूर्ण आयु १०८०० वर्ष ही होता है और सबसे बड़े सतयुग का आयु इसका चार गुना अर्थात ४३२०० वर्ष ही होता है। जिसको ४३२००० वर्ष का कीलित संख्या बुद्धजीवियों ने प्रमाण न रहने पर दे दिया।

यह पुष्प २०१३ अप्रैल में खिला था वहाँ से २७०० वर्ष घटा दे तो ६८७ बीसी पहुँच जाएंगे जहा से कलियुग के दूसरे चरण का प्रारम्भ हुआ और लगभग २०० साल में श्री बुद्ध का अवतार हुआ था। दूसरे चरण से २७०० वर्ष घटा दें, तब ३३८७ बीसी पहुंच जाएंगे जिसके आगे लगभग १८० वर्ष बाद श्री कृष्ण का जन्म हुआ था ।अर्थात यह पुष्प एक समय के अंत और नए समय के प्रारम्भ पर खिलता है और इसके खिलने पर २०० वर्ष के भीतर भगवान स्वयं पृथ्वी पर आतें हैं। जब धर्म के हानि से प्रकृति त्राहिमाम कर उठती है तब देवताओं के उदासीनता को दूर करने हेतु भगवान की विधि प्रारम्भ होती है। जैसे बच्चा गर्भ में नाल के सहारे ब्रह्माण्ड से जुड़ा रहता है उसी प्रकार गूलर का पेड़ जो पीपल और वट के वृक्षों से भी कोमल और गौर वर्ण है, उसके आधार पर एक नाड़ी से २७ नक्षत्रो का सर्पिल आकाश(ब्रह्माण्ड) गूलर के पुष्प के रूप में खिलता है जो भगवान के आगमन का ब्रह्म विधि सम्बोधित करता है। यह पुष्प धर्म के रक्षा हेतु भगवान के संकल्प का प्रमाण भी है। इस पुष्प से ग्रहीय प्रभाव से उत्पन्न होने वाली सांसारिक सभी पीड़ाओं का निवारण होता है फिर वह काल सर्प का पीड़ा हो या मंगल अर्थात भौम का दोष या किसी भी प्रकार का भय या रुकावट सब हल हो जाता है। इसलिए, भगवान ने बुद्धिष्ट कमल सूत्र में इस पुष्प को स्वर्गकिय ब्रह्मांडकीय कमल कहा है,और इसके कभी न समाप्त होने वाले सुगंध का भी वर्णन किया है ।