क्या आप अपने बच्चे का नामकरण सही तरीके से कर रहे है??
बालक का नाम उसकी पहचान के लिए नहीं रखा जाता। मनोविज्ञान एवं अक्षर-विज्ञान के जानकारों का मत है कि नाम का प्रभाव व्यक्ति के स्थूल-सूक्ष्म व्यक्तित्व पर गहराई से पड़ता रहता है। इसलिए नाम हमेशा सोच समझकर ही रखना चाहिए ।
मनुस्मृति के अनुसार
ब्राह्मण का नाम मङ्गलसूचक होना चाहिए।।
क्षत्रिय का नाम बलसूचक होना चाहिए।।
वैश्य का नाम धन सूचक होना चाहिए ।।
ओर शुद्र का नाम प्रकृति सूचक होना चाहिए।।
पारस्कृत सूत्रों के अनुसार पुरुष का नाम सम अंकों में, तथा स्त्री का नाम विषम अंकों में होना चाहिए । जैसे पुरुष का नाम 2, 4 आदि शब्दो मे आना चाहिए, तथा पुत्री का नाम 3 , 5 आदि अक्षरों में आना चाहिए ।।
मनु महाराज के अनुसार स्त्री का नाम उच्चारण में सरल और सूखकर , सुनने में अक्रूर, मनोहर, मङ्गलसूचक, दीर्घवर्णांन्त , आशीर्वाद युक्त होना चाहिए ।। स्त्री का नाम नक्षत्र, वृक्ष, नदी, पर्वत, पक्षी, सर्प पर सेवक के नाम पर भीषण नाम नही रखने चाहिए । मनु उस प्रकार की नामावली की कन्याओं से विवाह निषेध करते है । इसका कारण था इस प्रकार के नाम आदिवासियों जंगल मे रहने वाले लोगो के प्रचलित थे ।।
बौधायन के अनुसार नक्षत्र नाम गुप्त रखा जाता था, समाज के लिए दूसरा नाम हुआ करता था ,उपनयन काल तक वह नाम केवल माता पिता को विदित रहता था । नक्षत्र के अनुसार सही सही नाम केवल माता पिता को ज्ञात होता था, ताकि कोई शत्रु बालक को हानि नही पहुंचा सकें ।
नक्षत्र गुप्त नाम के बाद मास के देवता के नाम पर नाम रखा जाता था । गार्ग्य के अनुसार मास शीर्ष से आरम्भ होने वाले नाम है - कृष्ण, अनन्त, अच्यूत , चक्री, वैकुंठ, जनार्दन, उपेंद्र, यज्ञपुरुष, वासुदेव, हरि , योगीश, पुण्डरीकाक्ष ।।
उसके बाद आप कुलदेवता के नाम पर भी अपने शिशु का नाम रख सकते है, ताकि कुलदेवता की कृपा आपके शिशु को मिलती रहें ।
जिस नक्षत्र में जन्म हुआ हो, उस मास के देवता के अनुसार नामकरण होना चाहिए । नाम अगर कुलदेवता के नामपर हो, तो ओर उत्तम है । पिता या कुलवृद्ध या विश्वसनीय पंडित को नक्षत्र के अनुसार नाम रखना चाहिए ।
गृहसूत्रों के नियमो के अनुसार नामकरण संस्कार शिशु के जन्म के दसवें या बाहरवें दिन सम्पन्न होना चाहिए। इसमें गुप्त नाम कपितय आचार्यो द्वारा जन्म के दिन ही रख दिया जाता था। किंतु दूसरे विकल्प के तौर पर नामकरण संस्कार जन्म के दसवें दिन से लेकर दूसरे वर्ष के प्रथम दिन तक किया जा सकता है ।