पहले माँ छूटी, फिर पिता छूटे!
फिर जो नंद-यशोदा मिले, वे भी छूटे।
संगी-साथी छूटे,
राधा भी छूटीं।
गोकुल छूटा, फिर मथुरा छूटी।
कृष्ण से जीवन भर, कुछ न कुछ छूटता ही रहा!
नहीं छूटा तो देवत्व, मुस्कान और सकारात्मकता।
कृष्ण दुःख नहीं, उत्सव के प्रतीक हैं।
सब कुछ छूटने पर भी, कैसे खुश रहा जा सकता है यह,'श्री कृष्ण' से अच्छा कोई नहीं सिखा सकता!