प्रमोद गुप्ता's Album: Wall Photos

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दो उदाहरण देखिये

फिल्म स्टूडेंट ऑफ द इयर (2012 वाली) मे कहानी का तानाबुना कुछ यूं है कि राम कपूर अपने ही बेटे वरूण धवन से एक अनजानी सी नफरत करता है। एक दौड प्रतियोगिता मे जब वरूण धवन पिछड़ रहा होता है तो दर्शकों मे बैठा उसका सगा बाप अपने ही बेटे को हारते हुए देखकर खुश हो रहा होता है...मगर जब सिद्धार्थ मल्होत्रा जानबूझकर हार कर उसे जिता देता है तो अपने ही बेटे की जीत पर राम मल्होत्रा को बहुत तकलीफ होती है।

मै नेपाल कई बार गया हूँ। वहां मेरे कई रिश्तेदार है। सन 2005 या 2006 की बात है। उन जमाने मे भारत से नेपाल जानेवाले लोगो मे इंपोर्टेड सामान खरीद कर लाने का बड़ा क्रेज़ था। काठमांडू के एक मशहूर शाॅपिंग माॅल (नाम भूल गया) मे मेरे बुआ के बेटे की "इंपोर्टेड" गारमेंट्स का शो रूम है। मै उसके शो रूम मे बैठा था ....चाय नाश्ते के दौरान उसने बताया कि उसकी दुकान मे जितना माल है उसमे आधे से अधिक इंडिया से ही खरीदा गया है ...लुधियाना दिल्ली जैसी मंडियों से। उनपर मेड इन चाइना ...कोरिया...ताईवान...यूएस वगैरह का नकली स्टाम्प लगा होता है। इंडिया से जो टूरिस्ट जाते है वो उसी सामान को दस गुना रेट पर सिर्फ इसलिए बडी खुशी से खरीद लेते है कि उनकी नजर मे वो सामान "इम्पोर्टेड" है।

उसने इंडियन टूरिस्ट्स के बारे मे एक मजेदार वाकया सुनाया। उसने बताया कि उसके स्टाॅक मे बडी ही साधारण क्वालिटी की आठ दस शर्ट थी जो बिक नही रही थी...उनके दाम भी बहुत ही कम थे। काफी कम दाम होने के बाद भी जब वो शर्ट नही बिकी...तो उसे एक आइडिया आया। उसने क्लीयरेंस सेल की जगह से वो शर्ट्स हटाकर शोकेस मे लगाई और दाम दस गुना लिख दिये...।। अगले एक महीने मे दस गुना अधिक कीमत पर वो सारी शर्ट बिक गई....।।

हमारे समाज का एक बडा वर्ग है जिसके जेहन मे कहीं न कहीं ये ये मनोवैज्ञानिक काॅम्लेक्स है कि जो भी चीज महंगी होगी वही बढ़िया होगी...और बेटा हमेशा पडोसी का ही टैलेंटेड हो सकता है।

अब बाबा रामदेव की बात करते है।

बडे अफसोस की बात है कि अपने ही देश मे ... समाज कल्याण बल्कि कहना चाहिए कि विश्व कल्याण के लिए जो औषधि बनाई गई है उसका विरोध किया जा रहा है। ये सभी विरोधी वही राम कपूर है जो अपने ही बेटे की विजय नही देखना चाहते। ये वो लोग है जिनका अपना ही बेटा हारे तो ये लोग सुख का अनुभव करते है।

और कोरोनिल का विरोध करनेवाले फर्जी बुद्धिजीवियों का दूसरा तबका वो है जिसे डेढ सौ की शर्ट जबतक डेढ हजार मे न मिले इसके इगो को संतुष्टि नहीं होती। आज पतंजलि की यही कोरोनिल किट किसी पश्चिमी मल्टीनेशनल फ़ार्मा कंपनी द्वारा कोई...कोविडोस्टोजरोस्कोलिवीन जैसे फैंसी नाम से किसी चमकीले पत्ते मे और काली पीली शीशी मे लाॅन्च होती और उसकी कीमत 14975/- होती जिसे बडा अहसान करके दस प्रतिशत डिस्काऊंट पर दिया जाता .... तब जाकर इनको संतुष्टी होती।

कितने दुख की बात है जिन ingredients से बनी कोई टेबलेट जो एक काॅरपोरेट द्वारा बनाकर दस रूपये मे बेची जाती है....सेम वही दवा जेनेरिक मेडीसिन के रूप मे दो रूपये मे उपलब्ध है मगर उसका खरीददार नही है। काॅरपोरेट और मल्टीनेशनल फ़ार्मा कंपनियों की इस खुली लूट को सरकार का भी संरक्षण हासिल है और किसी हद तक उपभोक्ताओं का समर्थन भी मिलता है।

तस्वीर का दूसरा रूख भी है। कहा जा रहा है कि बाबा रामदेव जिस दवा को कोरोना वायरस "खत्म करने" मे सक्षम होने का दावा कर रहे है दरअसल वो सिर्फ एक उत्तम इम्यूनिटी बूस्टर है और कोरोना के उन मरीजों के लिए ही लाभदायक है जिनमे mild attack है...severe attack वाले मरीजों के लिए ये दवा कारगर नही है।

ये सही है कि बाबा रामदेव का दावा कि उनकी दवाई कोरोना वायरस को kill करने मे सक्षम है...अभी साबित होना बाकी है। मगर इसके बावजूद देश मे एक विशेष वर्ग द्वारा ...जिसमे मल्टीनेशनल लाॅबी और देशविरोधी लोग शामिल है...जिस सुनियोजित तरीके से उनका विरोध किया जा रहा है उससे हमारी आंखे खुल जानी चाहिए और हम सबको पुरजोर तरीके से बाबा रामदेव का समर्थन करना चाहिए।

काश...बाबाजी कोई ऐसी दवाई बना सकते जो इन राम कपूरो और मंहगे को बढिया समझने वालो की ज़ेहनियत को बदल सके।

भिवानी वाले भाई Sanjay Agrawal जी की पोस्ट ।