प्रमोद गुप्ता's Album: Wall Photos

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जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।…

सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए।
तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी म्यान का – उसे ढकने वाले खोल का।

कबीर दास का ये दोहा आज सज्जन और दुर्जन दोनो के लिये ही कितना सटीक बैठता है ।

ज्ञानी, साधु, संत-महात्मा तो कोई भी हो सकता है जरूरी नही कि वो ब्राह्मण या उच्च कुल में ही पैदा हो । और ऐसा भी नही है कि ब्राह्मण का मतलब सिर्फ ज्ञानी, साधु संत ही होना है, वो तो अपराधी भी हो सकता है वो अज्ञानी भी हो सकता है ।
ज्ञानी हो या अपराधी, आतंकी या देश द्रोही ये तो कोई भी हो सकता है उसे जाति, पंथ, वर्ण, मज़हब की सीमाओं में नही बांध सकते ।
पर सियासत और वोटबैंक दो ऐसी चीजें हैं जिसने हमेशा समाज को इसी आधार पर बांटा । पर सत्य है कि सत्ता और वोट के लिये हमेशा से ब्राह्मणों पर ही निशाना साधा गया , खिल्ली उड़ाई गयी और अपमानित भी किया गया ।

आशाराम बापू, रामपाल, राम रहीम , जाकिर नाइक, मोरारी बापू ,राम वृक्ष जैसे अनेक ठगों पर जमीन कब्जाने , बलात्कार , हत्या, आतंकवाद जैसे गंभीर आरोप लगे , जेल गये या भगोड़े निकले उनमे से तो कोई ब्राह्मण नही था या है पर क्या फिर भी इन्हें जाति -धर्म मे बांधना उचित है ?

पर इसमे किसी वर्ग विशेष को खुश होने की बात भी नही और इसका मतलब ये भी नही कि ब्राह्मण जन्मजात ज्ञानी या अन्यों से श्रेष्ठ हैं । वो तो विकास दुबे और श्रीप्रकाश शुक्ला की तरह दुर्दांत अपराधी भी हो सकता है या फिर हरिशंकर तिवारी और अमरमणि त्रिपाठी की तरह माफिया भी या पंडित सुखराम की तरह घोर भ्रष्ट और पंडित नारायण दत्त तिवारी की तरह दर ऐय्याश भी । तो फिर ये ब्राह्मणों के लिए शेर और शान भला कैसे हो सकते हैं । जैसा कि पिछले दो दिनों में दुर्दांत हत्यारे विकास दुबे को लेकर आभासी दुनिया में विवाद रचने की कोशिश की गई ।

पर इसका मतलब ये भी नही की ऐसे हत्यारे ,अपराधी, भ्रष्ट किसी अन्य वर्ग ,वर्ण या धर्म से नही हो सकते । दाऊद इब्राहिम, अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, छोटा राजन, बृजेश सिंह जैसे माफियाओं,

मलखान सिंह,पान सिंह तोमर ,
शिवकुमार पटेल उर्फ ददुआ, निर्भय गुज्जर,फूलन देवी,कुसुमा नाइन, सीमा परिहार, दयाराम गड़ेरिया, रमेश जाटव , अम्बिका पटेल उर्फ ठोंकिया जैसे मशहूर चंबल के डकैतों,

मुम्बई बम धमाकों और हमलों के दोषी मजीद मेमन, याकूब मेमन, अबु सलेम, तहब्बूर राणा, डेविड हेडली । संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु, शौकत गिलानी,
भाड़े की हत्यायों, अपहरण, वसूली के धंधों में लिप्त रहे अपराधी मुन्ना बजरंगी, अनिल दुजाना, सुंदर भाटी आदि आदि को जाति, वर्ण , धर्म मे बांटा जाय और इनके जाति धर्मो के नाम पर राजनीति हो या जातिगत स्वाभिमान का प्रतीक बताया जाय ।

विकास दुबे जैसे जघन्य हत्यारे हों या फिर नागरिकता संशोधन कानून और कश्मीर के नाम पर देशद्रोही गतिविधियां चलाने वाले, उन्हें किसी जाति या धर्म के आधार पर कोई सुरक्षा कवच नहीं हासिल है या अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर न ही महिमामंडित ही किया जा सकता है और ना तो विक्टिम की ही संज्ञा दी जा सकती है । सबकी सजा एक ही है और वो है कानून के आधार पर कठोरतम सजा या फिर एनकाउंटर ही सही ।

ठीक ऐसे ही समाज मे श्रेष्ठ , ज्ञानी और सज्जन की प्रतिष्ठा और पहचान हर किसी को हासिल हो सकती है उसे किसी जाति विशेष या धर्म विशेष का होना जरूरी नही ।
संत रविदास से लेकर गुरु नानक देव, महात्मा गांधी और सरदार पटेल से लेकर ए पी जे अब्दुल कलाम और नरेंद्र मोदी, महर्षि वाल्मीकि से लेकर बाबा रामदेव किसी उच्च कुल में पैदा होने की वजह से नहीं इतने सम्माननीय और पूज्यनीय हैं बल्कि देश-समाज के लिये अपने समर्पण, ज्ञान और दिव्य व्यक्तित्व की वजह से उन्हें ये स्थान हासिल है ।

अतः बेहतर हो आज जब देश को वैश्विक महाशक्ति बनने के लिए शिक्षा,स्वास्थ्य, विज्ञान-तकनीक, बिजली-पानी के क्षेत्र में उत्तरोत्तर प्रगति और अधिक से अधिक उद्योग धंधों को विकसित करने की जरूरत है तब जाति,मत, धर्म, वर्ण के आधार पर श्रेष्ठता और ज्ञान का आंकलन बंद हो ।

जाति पाती पूछे नहिं कोई,
जो हरि को भजे सो हरि को होई !