प्रमोद गुप्ता's Album: Wall Photos

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मेजर जनरल जी० डी० बख़्शी
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जनरल साहब का पूरा नाम “गगनदीप बख़्शी” है!

सालहा साल उनके बदलते फ़ौजी पायदानों के कारण, तख़ल्लुस भी बदलते रहे होंगे. इकहत्तर में उन्हें लेफ़्टिनेंट साहब कहा गया होगा, निन्यानवे में कर्नल साहब और फिर दो हज़ार आठ में जनरल साहब. मग़र आख़िर में उनके नाम का लघुरूप “जी० डी०” ही सर्वमान्य तख़ल्लुस बन बैठा.

जब भारत व पाकिस्तान के बीच, आज के बांग्लादेश (तब के पूर्वी पाकिस्तान) को लेकर खींचतान चल रही थी, तब उस सत्रह बरस के लड़के ने नेशनल डिफ़ेंस अकादमी में जगह पाई थी, सन् 1967.

और जब बतौर सेकंड लेफ़्टिनेंट पहली पोस्टिंग मिली, भारत पाकिस्तान का युद्ध चल रहा था. सन् इकहत्तर के युद्ध में भाग लेना, उनकी उपलब्धियों में गिना जाता है. मग़र किसी “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” के तहत राष्ट्रविरोधी न्यूज़ पोर्टल “द प्रिंट” को इस बात पर प्रश्न उठाने का अधिकार मिल जाता है कि वास्तव में बख़्शी वॉर-हीरो हैं या नहीं?

पोर्टल की अन्वेषणा का आधार बख़्शी साहब के सीने पर लगे पदक हैं. मैं चकित हूँ कि अब तक “जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स” की ओर से उनके अपने अलंकरण-कक्ष को चुनौती देने वाले “द प्रिंट” के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं की गई है!

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ध्यातव्य हो कि बख़्शी साहब का पूरा फ़ौजी कैरियर “डोगरा पलटन” को समर्पित रहा.

सन् 1821 में, सिखों के महाराजा रणजीत सिंह के कश्मीरी सामंत गुलाब सिंह ने डोगराओं को अपनी सेना की पृथक् पलटन का दर्जा दिया था. सन् 1846 में, जब जम्मू-कश्मीर को ब्रितानी हुकूमत में अपना राज्य घोषित किया, डोगरा पलटन को “स्टेट फ़ोर्स” कहकर राज्य की सुरक्षा सौंप दी.

कालांतर में, जब भारत आज़ाद हुआ, स्टेट फ़ोर्स को “जम्मू कश्मीर राइफ़ल्स” का नाम देकर भारतीय सेना में शामिल कर लिया गया. तब से लेकर आजतक, इस रेजिमेंट ने प्रत्येक युद्ध में अहम भूमिका निभाई है.

उस बीस बरस के लड़के गगनदीप बख़्शी को यही रेजिमेंट आबंटित हुआ था!

चूँकि पैंसठ की लड़ाई में, वो लड़का अपने बड़े भाई को खो चुका था. वो बेहतर जानता था कि ये रेजिमेंट सबसे पहले युद्ध की आहट सुनने वाला है, पहले प्रहार को सहन करने वाला है. किंतु फिर भी, उस बहादुर लड़के ने बेहिचक इसी रेजिमेंट में बतौर सेकंड लेफ़्टिनेंट सेवाभार ग्रहण किया.

कमसकम इसलिए तो नहीं कि चालीस साल बाद कोई एक तुच्छ-सा पोर्टल उससे पूछ लेगा : “आर यू अ वॉर हीरो?”

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जनरल बख़्शी के सीने पर कुल बारह पदक हैं!

इनमें से ऐसा कोई भी नहीं, जो अपने वर्णन में अदम्य साहस और शौर्य को अभिहित करता हो. चूँकि जासूसों को वैसे पदक नहीं दिए जाते. जनरल बख़्शी अपने फ़ौजी दिनों में एमआई (मिलिटरी इंटेलिजेंस) के आदमी थे. बाक़ायद दो आधिकारिक कार्यकाल उन्होंने वाबस्ता एमआई बिताए हैं.

तथापि यदि इन बारह में कोई उल्लेखनीय पदक है भी, तो वो है ऑपरेशन विजय मेडल. साढ़े तीन सेमी का पदक, जिसके लिए हुतात्माओं ने समुद्रतल से साढ़े पाँच हज़ार मीटर ऊपर “टाइगर” चोटी पर जाने का लक्ष्य सुनिश्चित किया था और सफलतापूर्वक पाया भी.

जनरल बख़्शी उनदिनों कर्नल हुआ करते होंगे, या फिर लेफ़्टिनेंट कर्नल!

एमआई का सदस्य रहने के कारण, उनका सर्विस रिकॉर्ड सार्वजनिक नहीं है. चूँकि ऐसी चूक से शत्रुपक्ष द्वारा सेना का नियुक्ति पैटर्न जाना जा सकता है. किंतु फिर भी, कारगिल युद्ध में श्री बख़्शी का जासूसी आवरण था कि उन्होंने एक बटालियन का प्रतिनिधित्व किया. यानी कि वे कर्नल या कमसकम लेफ़्टिनेंट कर्नल तो थे ही.

मग़र उनकी बटालियन शत्रु के साथ सीधे मोर्चे पर न होकर, कश्मीर के जंगलातों की ख़ाक छान रही थी, जासूसी कर कमज़ोरियाँ खोज रही थी, नए नए मार्ग खोज रही थी, ताकि टाइगर चोटी को हासिल करने में कोई बाधा उत्पन्न न हो. और युद्ध समाप्ति पर कर्नल बख़्शी को “हीरोज़ ऑफ़ द ऑपरेशन” में शामिल किया गया. (रेजिमेंट के अलंकरण कक्ष का चित्र टिप्पणी मंजूषा में!)

यहाँ ज्ञातव्य हो कि कारगिल वॉर में परमवीर चक्र पाने वाले दो योद्धा कैप्टन विक्रम बत्रा और राइफलमैन संजय कुमार, उसी रेजिमेंट से थे, जिससे जनरल बख़्शी हैं : “जम्मू कश्मीर राइफल्स”. इन दोनों ही की बटालियन भी एक ही थी, तेरहवीं बटालियन.

इस बात में कोई बहुत आश्चर्य न होगा कि इस बटालियन के कमांडर कर्नल बख़्शी रहे हों. चूँकि सेना कभी ये सूचनाएँ ज़ाहिर नहीं करती है, सो आम जनता ने ये मान लिया है कि आज रेजिमेंट के लेफ़्टिनेंट जनरल श्री योगेश जोशी ही कारगिल वॉर में तेरहवीं बटालियन के कमांडर रहे होंगे, गूगल भी यही कहता है.

किंतु मुझे कई कई बार ये शंका होती है कि हो न हो, तेरहवीं बटालियन के कमांडर श्री बख़्शी ही रहे होंगे!

ऐसे सफल जासूस, छब्बीस सैन्य किताबों के लेखक, सफल कमांडर को जब कोई तुच्छ पोर्टल प्रश्नचिन्हों से घेर लिया करता है, तो एक हूक सी उठ आती है, कोफ़्त होती है, टीस उभरती है कि मेरा देश किस दिशा में जा रहा है.

अस्तु.

✍️ Yogi Anurag

[ चित्र : इंटरनेट से साभार. ]