प्रमोद गुप्ता's Album: Wall Photos

Photo 158 of 231 in Wall Photos

जिस राष्ट्र की युवा शक्ति उज्जड,,,उद्दंड तथा अशिक्षित की तरह व्यवहार करे ,,तो उस राष्ट्र का विकास तथा उसके संबंध दोनों अवरुद्ध हो जाते हैं,,,,ये मेरे नहीं आचार्य चाणक्य का तर्क है,,जो हर युग ,,काल एवं समय में सार्वभौमिक है। इस कथन को उद्धृत करने के पीछे मेरा उद्देश्य आज के वाराणसी प्रकरण की निंदा करना है,,जहां एक निरपराध नेपाली का सर मुंडवा कर उससे नारे लगवाए गए। अब इसे हम दो तरह के तर्कों की कसौटी पर कसते हैं,,,पहला

१. इससे हमारा कौन सा राष्ट्रवाद सिद्ध हुआ?
२ इससे हम राम के किस सिद्धांत का प्रतिपादन कर रहे।

पहली बात तो मैं कहना चाहता हूं कि राष्ट्रवाद किसी Electoral process अथवा Political establishment की मोहताज नहीं,, बहुत वृहद स्वरुप है इसका। राष्ट्र में निवास करते हुए जिस कर्म से हमारी आजीविका चलती है,, राष्ट्र हित में इमानदारी पूर्वक उस कर्म का निर्वहन "" राष्ट्रवाद" है। भ्रष्टाचार का समर्थन ना करना एवं भ्रष्टाचारी ना होना "_राष्ट्रवाद"" है। जातिवाद और आरक्षण का विरोध करना ""राष्ट्रवाद"" है। अपने सांस्कृतिक,,, पारिवारिक एवं नैतिक मूल्यों का पालन एवं संरक्षण ""राष्ट्रवाद"" है। नारी शक्ति के प्रति संस्कार एवं संवेदनशीलता ""राष्ट्रवाद" है। इनको अलग रखकर एक ऐसे इंसान का उत्पीडन ,,जिसकी भूमि एक समय में अखंड भारत का हिस्सा रहा हो,,,जहां आज भी हिंदूत्व हमसे कहीं ज्यादे मुखर हो,,, जिसके युवा हजारों की संख्या में हमारी फौज में शामिल होकर राष्ट्रीय सेवा कर रहे हैं,,,और जो सांस्कृतिक तथा सामरिक दृष्टि से हमारे लिए अत्यंत महत्व रखता हो,,,मेरी समझ से घृणित है और यह हमारे स्वघोषित तथा Self interpreted Nationalism का‌ स्तर भी बताता है। हम तब आकलन ही नहीं कर पा रहे कि हमारे किस कदम से वैश्विक स्तर पर हमारे देश तथा सरकार की किरकिरी होगी और हमें कटघरे में खड़ा होना पड़ेगा। It's called sheer lack of knowledge & common sense...यानी परम मूर्ख। बहुतायत में हैं ऐसे चारों तरफ।

अब आती है बात श्रीराम की,,,,तो श्रीराम का नाम लेकर इस तरह का काम घोरतम पाप की श्रेणी में आता है। जिस श्रीराम ने शरणागत वत्सल का रुप रखा,,,शरणं में आये शत्रु तक को रक्षित किया ,,,जो दीनबंधु,, दुखहर्ता एवं दीनानाथ हैं,,,उनकी भूमि पर ऐसा अनुचित व्यवहार शोभा नहीं देता। हम फिर राम को जानते ही नहीं। Shri Ram is a bridge who has connected every land ,,,caste and creed with his राम राज्य परिकल्पना i.e blue print....राम को अगर ओली कहता है कि वह मेरे यहां के हैं तो इसे राम प्रेरणा मानता हूं। राम से विमुख और कम्युनिस्ट प्रभाव से ग्रसित नेपाल के लिए यह संजीवनी हो सकती है,,, हिंदुत्व का देदीप्यमान तेज जाग्रत हो सकता है पशुपतिनाथ की भूमि से। इसलिए हे मूढ़ जनों अपनी थोथी राजनीतिक महत्वाकांक्षा एवं अज्ञान को श्रीराम के राम तत्व तथा राष्ट्रवाद से ना जोड़ें।

हमारे राम और उनका चरित्र ही हमारी असली राष्ट्रवाद एवं पहचान है ,, इसे कृपया धूलधूसरित ना करें अपने कुत्सित प्रयासों से।

- पाणिनि तिवारी भाई की पोस्ट