➡️ #जानें कुछ शक्स यूँ रस्म निभाते क्यूँ हैं
दिखा के खुशियाँ उम्रभर को रुलाते क्यूँ हैं
जान लेगी इक रोज ये मयकशी मेरी
फिर मेरे दोस्त मुझको पिलाते क्यूँ हैं
अश्क पीते रहे जिनके लिए ताउम्र वही
चंद अश्कों को अंगूलियों पे गिनाते क्यूँ हैं
हौसला पास न हो "शाफिर" जो सच सुनने का
मेरे जैसों को फिर महफिल में बुलाते क्यूँ हैं ➡️