ओम प्रकाश पटेल's Album: Wall Photos

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"सुबह के ठीक सवा आठ बजे मेजर साहब ने प्राण दे दिए। मैंने उनके हाथ पर बंधी घड़ी को देखा। वो सवा आठ पर रुक गई थी। वो घड़ी उनकी नब्ज से चलती थी।"
ये कहना है सूबेदार रामचन्द्र यादव का जो 1962 युद्ध में रेजांग ला पोस्ट के जिंदा बचे 2 सैनिकों में से एक है।

मैं जब छोटा था तो उत्तर पश्चिम राजस्थान के कई घरों में मेजर शैतान सिंह की फ़ोटो लगी हुए देखता था। मुझे ताज्जुब होता था कि आखिर क्यों ये लोग अपने घरों में इस फौजी की फ़ोटो लगाए रखते हैं?

फिर मैंने मेरी स्कूली किताबों में 1962 के भारत चीन युद्ध की बातें पढ़ी तो बार-बार मेजर शैतान सिंह का नाम सामने आता। मुझे कुछ ज्यादा समझ नहीं आ रहा था क्योंकि बचपन से ही रट्टा मारकर पढ़ने की आदत रही थी तो जितना किताब में लिखा होता था उतना याद कर लेते और कॉपी में टीप देते। शायद यही कारण था जो मैं सोचता कि आखिर इस शख्स ने ऐसा क्या किया जो किताबों में इसके पाठ आ रहे हैं?

फिर मुझे पता चला कि जिस 37 की उम्र में आकर इंसान सैटल होने की सोचता है, बड़े घर-महंगी कार की किश्तें भरनी चालू करता है, उस उम्र में मेजर शैतान सिंह ने ऐसा काम किया जो उन्हें सदियों तक हिंदुस्तान के इतिहास में अमर कर गया। उन्होंने देश के लिए वो सब किया जिसने उन्हें देश के सर्वोच्च सैनिक सम्मान का हकदार बना दिया।

अब मेरी समझ का दायरा थोड़ा बढ़ने लगा था। मैंने कुछ किताबें पढ़ी। मुझे समझ आया कि मेजर शैतान सिंह को परमवीर चक्र मिला था, जो देश का सबसे बड़ा सैन्य सम्मान होता है। मुझे ये भी समझ आया कि आखिर क्यों इस फौजी की तस्वीर अमूमन हर गांव की तिबारी (गेस्ट रूम) में मिल जाती है।

कुछ साल बाद जब मैं किसी पहाड़ी इलाके में गया और एक छोटी पहाड़ी पर सीढ़ियों से चढ़ा तो मेरी सांस हांफने लगी। सीना फूल गया और पसीने से पूरा शरीर गीला हो गया। मुझे लगा कि यहां हवा नाम की चीज़ ही नहीं!
तब मुझे याद आया कि मेजर और उनके साथी तो 16000 फ़ीट की ऊंचाई पर चीनियों से लड़े थे और वो भी माइनस डिग्री तापमान में लगातार गिरती बर्फ के बीच। ऐसे कुछ खास कपड़े भी नहीं थे उनके पास जो ठंड में आती सर्द हवाओं से उनका बचाव कर सके।
तब मुझे समझ आया कि आखिर क्यों मेरे गांव के लोग सीमा पर तनाव शुरू होते ही मेजर की बहादुरी के किस्से सुनाने लगते हैं!

बात 1962 की है जब हरियाणा और उत्तरप्रदेश के कुछ जवान जो नए-नए सेना में भर्ती हुए थे, उन्हें कहा गया "आपकी पोस्टिंग चुसूल सेक्टर कश्मीर में की जाती है। आपके कमांडर मेजर शैतान सिंह होंगे। एनी ऑब्जेक्शन?"
"नो सर!" देशभक्ति से भरे उन साहसी जवानों ने एकस्वर में जवाब दिया।

दूसरा दिन बीता। तीसरा दिन बीता। मैदानी इलाके के जवानों के लिए ये इलाका बिल्कुल नया था। हरियाली भरे खेतों से निकलकर पहली बार इतने ऊंचे पहाड़ों पर आए थे। पहली बार इतनी तेज सर्द हवाओं का सामना हुआ। लेकिन जवानों का हौसला उन पहाड़ों से भी मजबूत!

तीसरे दिन रात की गश्त चालू थी। बर्फबारी हो रही थी। जवान 18000 फुट ऊँचाई पर बर्फीली हवाओं के बीच गश्त कर रहे थे कि सुबह तीन-साढ़े तीन के आस-पास उनको दुश्मन चीनी खेमे की तरफ से कुछ हलचल होती दिखाई दी। ऐसा लग रहा था कि दुश्मन हमारी पोस्ट की तरफ बढ़ रहा है। जवानों ने मेजर शैतान सिंह को इत्तिला दी।
मेजर बोले "कोई दिक्कत नहीं। तुम लोग हथियार सेट करो। मैं नीचे हेडक्वार्टर से और सिपाही बुलाता हूँ।"
मेजर शैतान सिंह ने हैडक्वार्टर संपर्क किया। वहां से जवाब आया कि हम फिलहाल जवान भेजने की स्थिति में नहीं है। आपलोग भी रेजांग ला पोस्ट छोड़कर जल्दी से नीचे आ जाओ।

पोस्ट छोड़ने का मतलब था कि बिना लड़े ही दुश्मन को तोहफा दे देना। भारी तौहीन वाली बात थी। मेजर ने साथियों को बुलाया और कहा कि जब तक जान रहे तब तक लड़ना है। बंदूक में गोली खत्म हो तो बट से भी दुश्मन को मारना है। लेकिन जिंदा नहीं छोड़ना। दुबारा इन चीनियों की हिम्मत नहीं होनी चाहिए अपनी तरफ आंख उठाकर देखने की।

जवानों ने अपने अफसर की बात मानी और ऐसे लड़े कि हिंदुस्तान के इतिहास में अमर हो गए। गोले खत्म हुए तो अंग्रेजों के जमाने की .303 बंदूकों से मुकाबला किया। गोलियां खत्म हुई तो बंदूकों की नाल से चीनियों को मारा, और जब बंदूके टूटी तो हरियाणे के एक छः फुटे जवान संग्राम सिंह ने चीनियों को सिर पकड़-पकड़ कर भिड़ाना शुरू किया।
एक तरफ जवान चीनियों को लगातार मार रहे थे वहीं दूसरी तरफ मेजर शैतान सिंह लगातार मोर्चे पर सबसे आगे डटे थे और अपने साथियों को हौसला दे रहे थे। अचानक एक गोला आकर मेजर पर फूटा और उनके पैर का मांस और अंतड़ियां बाहर आई लेकिन फिर भी अपने जवानों से बोले कि मेरे पैर के मशीनगन का ट्रिगर रस्सी से बांध दो। मैं चल नहीं सकता तो क्या बैठे बैठे ही इन चीनियों को तो खत्म कर ही दूंगा।

रात साढ़े तीन से सुबह साढ़े आठ बजे तक युद्ध चला।
चीनी थे तीन हजार के पार और अपने जवान थे 123. उन बहादुर जवानों ने इतनी हिम्मत से चीनियों को टक्कर दी कि उनमें से 1300 को वहीं खत्म कर दिया। हमारे 114 जवान शहीद हुए।

अंत में जब रेजांग ला पोस्ट को चीनियों ने चारों तरफ से घेर लिया तब मेजर ने अपने दो जवानों को कहा कि तुम नीचे जाओ और सबको बताओ कि किस बहादुरी और शिद्दत से 13 कुमाऊँ के सिपाही लड़े थे!!

इस ही कवि प्रदीप ने लिखा था "दस-दस को एक ने मारा, फिर गिर गए होश गंवा के।
जब अंत समय आया तो कह गए कि अब चलते है, खुश रहना देश के प्यारों अब हम तो सफर करते हैं।।

भारत चीन के युद्ध में यही एकमात्र ऐसी पोस्ट थी जिस पर हुए सबसे ज्यादा नुकसान की वजह से चीन ने युद्ध विराम की घोषणा की थी। यही एक पोस्ट थी जहां भारतीय सेना ने दुश्मन को अंदर नहीं घुसने दिया। ये बात चीन ने युद्धविराम के बाद खुद की एक रिपोर्ट में भी मानी और भारतीय सैनिकों की बहादुरी को सराहा।

उस युद्ध से जिंदा वापस लौटे 6 सैनिकों को भी उनके गांवों में ज्यादा सम्मान से नहीं देखा गया। उनका हुक्का-पानी बंद कर दिया गया। उनके बच्चों को स्कूलों से निकाल दिया गया और उनके साथ भगोड़ों जैसा बर्ताव किया गया। उनकी बात पर किसी ने विश्वास नहीं किया। सबको लगा कि बाकी भारतीय सैनिकों को चीनी सेना ने बंदी बना लिया और ये जान बचाकर भाग आए।

आखिर जब तीन महीने बाद बर्फबारी खत्म होने पर सैनिकों की लाशें निकली तो पूरा देश उनकी बहादुरी से रुबरु हुआ। मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत परमवीर चक्र दिया गया।
मेजर शैतान सिंह और उनकी 13 कुमाऊँ बटालियन की बहादुरी को देश हमेशा याद रखेगा।

https://www.hemmano.com/major-shaitan-singh-indo-china-war-1962/