DEVENDRA SINGH BAIS's Album: Wall Photos

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महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह के बाणशैय्या पर गिर जाने के बाद दुर्योधन के सेनापति आचार्य द्रोणाचार्य बने.
चूँकि वे आचार्य थे और उन्होंने ही सभी कौरवों और पांडवों को शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा दे रखी थी तो जाहिर से बात है कि वे युद्ध कला में बेहद निपुण थे.

उन्होंने, सेनापति बनते ही नए-नए चक्रव्यूह बनाकर पांडवों की सेना का संहार शुरू कर दिया.
इस लगातार होते संहार से पांडव बहुत चिंतित हो गए और उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से इस बारे में विमर्श किया.

विमर्श में ये बात सामने आई कि... आचार्य द्रोणाचार्य के जीवित रहते हुए महाभारत का युद्ध जीतना काफी कठिन है.
लेकिन, चर्चा के दौरान ये बात भी सामने आई कि... आचार्य द्रोणाचार्य अपने पुत्र अश्वस्थामा से बहुत प्यार करते हैं.
इसीलिए, अगर आचार्य द्रोणाचार्य को किसी तरह तरह समझा दिया जाए कि उनका पुत्र अश्वस्थामा युद्ध में मारा गया है तो वे विचलित हो जाएंगे और उनका ध्यान युद्ध से भटक जाएगा....

और, फिर उन्हें मारना बेहद आसान हो जाएगा.

इसीलिए... पांडवों ने एक युद्धनीति अपनाई और उन्होंने अश्वस्थामा नामक "एक हाथी को" मार दिया और इस बात का अफवाह उड़ा दिया कि... अश्वस्थामा मर गया.

जब, जब ये खबर आचार्य द्रोणाचार्य को मिला तो उन्हें इस बात पर विश्वास नहीं हुआ क्योंकि आचार्य को मालूम था कि अश्वस्थामा अमर है.

फिर भी.... अफवाह बहुत जोर का था और हर कोई इसी की चर्चा कर रहा था इसीलिए आचार्य द्रोणाचार्य ने ... युधिष्ठिर को बुला कर इसकी कंफर्मेशन मांगी क्योंकि युधिष्ठिर कभी झूठ नहीं बोलते थे.

युधिष्ठिर ने भी आचार्य को बताया कि...
जी, हाँ आचार्य.
अश्वस्थामा मर गया है... लेकिन , "आदमी नहीं हाथी."

परंतु... आचार्य द्रोणाचार्य पहले लाइन को सुनते ही शोकाकुल हो गए और.... कुछ शोक और कुछ युद्ध की गर्जना के बीच युधिष्ठिर की दूसरी लाइन सुन ही नहीं पाए.

परिणामस्वरूप युद्ध से उनका ध्यान भटक गया और अंततः दृष्तदुम के हातो वे वीरगति को प्राप्त हो गए.