भगवान श्रीराम ने समुद्र के ऊपर १०० योजन लम्बा पुल निर्मित करवाने जैसा असम्भव कार्य सम्भव कर दिया। एक वर्ग इसे प्रभु श्रीराम के मातेश्वरी सीता के लिए प्रेम का प्रताप मानता है, तो दूसरा वर्ग कहता है कि यह असम्भव कार्य उनके हृदय में रावण के प्रति उपजी शत्रुता और संताप का परिणाम है।
जो भी हो, किंतु मनोवैज्ञानिक ये कहते हैं की जो शक्ति प्रेम या मित्र भाव में होती है, वही शक्ति द्वेष और शत्रुता के भाव में भी होती है। तब प्रश्न यह खड़ा होता है कि जब ये दोनों ही भाव समान रूप से शक्तिशाली हैं, तब शत्रुता के भाव को हमारे मनीषियों ने वह महत्व क्यों नही दिया जो मित्रता के भाव को दिया है ?
सम्भवतः इसलिए कि शत्रुता का गहरा भाव शत्रु के ‘अवसान’ का कारण बने या ना बने किंतु स्वयं के ‘अवसाद’ का कारण अवश्य बनता है और अवसादग्रस्त होना मनुष्य की संस्कृति का नही विकृति का प्रमाण होता है।~#आशुतोष_राना