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डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 को कलकत्ता में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1921 में ग्रेजुएशन की और 1924 में कानून की पढ़ाई पूरी की। श्यामा प्रसाद महज 33 वर्ष की आयु ही ‘कलकत्ता विश्वविद्यालय’ के कुलपति बने। इस पद पर नियुक्त होने वाले वह सबसे कम आयु के व्यक्ति थे। वह पंडित जवाहर लाल नेहरू मंत्रिमंडल में उद्योग और आपूर्ति मंत्री रहे, लेकिन नेहरू से मतभेदों के कारण उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद उन्होंने नई राजनैतिक पार्टी ‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना की।



डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का राजनितिक सफर
डॉ मुख़र्जी के राजनैतिक जीवन की शुरुआत सन 1929 में हुई, जब उन्होंने कांग्रेस पार्टी के टिकट पर बंगाल विधान परिषद् में प्रवेश किया। लेकिन अगले ही साल कांग्रेस के वि‍धानमंडल बहि‍ष्‍कार को देखते उन्‍होंने इस्‍तीफा दे दि‍या। निर्दलीय चुनाव लड़ कर 1941-42 में वह बंगाल राज्य के वित्त मंत्री रहे। वर्ष 1937-1941 में कृषक प्रजा पार्टी और मुस्लिम लीग गठबंधन के सत्ता में आने पर श्यामा प्रसाद वि‍रोधी दल के नेता बने। इसके बाद फजलुल हक़ के नेतृत्व की सरकार में वह वित्त मंत्री बने, लेकिन एक साल बाद ही उन्होंने इस पद से इस्‍तीफा दे दिया।

स्वतंत्रता के बाद जब पंडित जवाहरलाल नेहरु की सरकार में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने ‘उद्योग और आपूर्ति मंत्रालय’ की जिम्मेदारी संभाली।

‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना
गांधी जी और सरदार पटेल के कहने पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी जवाहरलाल नेहरु की सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल तो हुए, लेकिन अपनी राष्ट्रवादी सोच के चलते कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ उनके मतभेद रहे। अन्य लोगों के अलावा पंडित जवाहरलाल नेहरू से भी श्यामा प्रसाद मुखर्जी के कई मतभेद रहे, लेकिन नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के बीच समझौता होने के बाद 6 अप्रैल 1950 को उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने नेहरू पर तुष्टिकरण का आरोप लगाए।

नेहरू मंत्री मंडल से अलग होने के बाद, उन्होंने 21 अक्टूबर 1951 को ‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना की। बाद में ‘जनता पार्टी’ में इसका विलय हो गया। 1980 में ‘भारतीय जनता पार्टी’ का गठन हुआ।

धारा 370 और ‘एक देश–दो वि‍धान, दो प्रधान–दो नि‍शान’ का नारा
डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू कश्मीर को एक अलग दर्जा दिए जाने के विरोधी थे। वह चाहते थे जम्मू कश्मीर को भी अन्य राज्यों की तरह माना जाए। इस के लिए उन्होंने ‘एक देश में दो वि‍धान, दो नि‍शान और दो प्रधान नहीं चलेगा’ का नारा दिया। उन्होंने संसद में धारा-370 को समाप्त करने की वकालत की। धारा 370 लागू होने से कश्‍मीर में बगैर परमीट के कोई दाखि‍ल नहीं हो सकता था। इसके वि‍रोध में उन्‍होंने अगस्त 1952 में जम्मू में विशाल रैली करते हुए कहा, ‘या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा।’

वर्ष 1953 में श्यामा प्रसाद बिना परमिट के जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। ऐसा करने के लिए उन्हें 11 मई 1953 को गिरफ्तार कर लिया गया। गि‍रफ्तारी के कुछ दि‍न बाद ही 23 जून 1953 को उनकी रहस्‍यमय परिस्थितियों में मृत्‍यु हो गई।
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