rameshkumarojha8's Album: Wall Photos

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शुभरात्रि।

"फिर धंस गया न कुछ पांव में?
कितनी बार कहा है तुमसे की पर्वत है ये,
तुम्हारे राजमहल का आंगन नहीं जो नंगे पाव टहलती रहती हो,
बैठो इधर,
देखने दो क्या हुआ पांव में तुम्हारे।"
सती को हल्का सा लड़खड़ाकर चलते देख शिव ने उन्हें डांटना शुरू कर दिया।
सती ने कुछ कहा नहीं और शिव के सामने सर झुकाकर बैठ गई।
" ये क्या कर रहे आप?
आप देवता है मेरे,
पति होकर आप मेरा पांव छुएंगे?
ऐसा अनर्थ न करे प्रभु।"
शिव ने जब झुककर सती के पांव देखने की कोशिश की तो सती ने हड़बड़ाकर अपने पांव खींच लिए।
"ज्यादा समझदार मत बनो,
इतनी ही समझदार होती तो इस पर्वत पर नंगे पांव न घूमती तुम,
और किसने कहा कि मै अगर तुम्हारे पांव छू दूंगा तो अनर्थ हो जाएगा?
तुममें आधा मै हूं,
और मुझमें आधी तुम हो।
तुम्हारे पांव का कंकर मेरे पांव में भी चुभता है।"
शिव ने सती को प्यार से डांटते हुए उनका पांव अपनी गोद में रख लिया,
और अपनी उंगली से पांव के उस हिस्से को सहलाने लगे जहाँ पर कंकर ने अपना लाल निशान छोड़ रखा था।
"इतना प्रेम करते है आप मुझसे,
शायद ही संसार में कोई किसी को करता होगा,
फिर भी न जाने क्यों पिताजी को आपसे बैर है इतना।"
सती ने अपना पांव थामे शिव को देखते हुए पूछा।
"राजा दक्ष को बैर नहीं है मुझसे,
बस जलते है वो जरा सा और कोई बात नहीं है"
शिव ने सती की आंखो में छुपे हुए सवालों को ढूढते हुए कहा।
"वो भला क्यों जलेंगे आपसे?
सब कुछ तो है उनके पास?"
सती की आंखो में आश्चर्य था।
"जिस सती को पुत्री के तौर पर पाने के लिए राजा दक्ष ने कठोर तपस्या की थी,
आज वो उन्हें भूल कर मुझसे प्रेम करती है,
जलन तो होनी ही थी न उन्हें।"
शिव ने सती के गालों को दोनों हाथों से खींचते हुए हंसकर जवाब दिया।
"तो इसका मतलब आपको उनसे कोई बैर नहीं है न?"
सती ने शिव के हाथ को अपनी तरफ खींचते हुए पूछा।
"मै क्यों बैर लूंगा किसी से सती,
तुम तो जानती हो न मुझे।"
शिव ने सती से कहा।
"तो मै जाऊँ ?
पिताजी यज्ञ करा रहे है न,
सारी बहने होंगी वहाँ पर मेरी।"
सती ने बच्चों सी जिद करते हुए कहा।
इस बारे में शिव सती को कई दिन से समझा रहे थे,
उन्हें मालूम था कि वहाँ जाकर सती को सिर्फ कष्ट ही होगा और कुछ नहीं,
पर शिव देवता भले ही थे पर पति भी थे,
इसलिए देवो के देव ने सती की जिद के सामने हार मान ली।
"ठीक है चली जाना पर साथ में वीरभद्र को भी लेते जाना।"
सती ने हाँ में सर हिला दिया।
अगली सुबह सती को जाना था।
शिव ने खुद ही इजाजत दी थी पर न जाने क्यों एक उदासी ने उन्हें घेर रखा था,
यही हाल सती का भी था,
वो तो मरी जा रही थी पीहर जाने के लिए पर अब जब जाने का वक्त था तब उनका दिल जैसे शिव के पास से हटने को राजी ही नहीं था।
"याद करेंगे न मुझे?"
शिव के कंधे पर सर टिकाए सती ने पूछा।
"ये कैसा सवाल है?
कौनसा हमेशा के लिए छोड़ कर जा रही हो तुम?"
शिव ने बेमन से जवाब दिया।
"बात न घुमाइए,
बताइए न"
सती न जाने किस सोच में पूछे जा रही थी।
"जब तक तुम आओगी नहीं,
मैं इसी पर्वत की चोटी से तुम्हारी राह देखूंगा,
मिल गया जवाब?
अब खुश हो?"
शिव ने हल्का सा मुस्कुराते हुए सती को छेड़ा।
"हर बात को मजाक में नहीं लेते,
बताइए न,
मै कभी आपको छोड़ कर चली गई और नहीं लौट पाई तो ढूंढेंगे आप?"
सती को शिव का मजाक पसंद नहीं आया।
"मेरी ये दोनों आँखें जब तुम्हे ढूढते ढूढते थक जाएंगी तो मैं आपनी तीसरी आँख से तुम्हे ढूढने की कोशिश करूंगा"
शिव भी अब उसी भाव से जवाब दे रहे थे जिस भाव से सती सवाल पूछ रही थी।
"ऐसा न करना प्रभु,
प्रलय आ जाएगी संसार में,
वचन है आपको मैं अगर कभी गई भी तो आप ऐसा कुछ नहीं करेंगे।"
सती ने शिव के चेहरे के तरफ देखते हुए कहा।
"तो अगर तुम मुझे न मिली सती तो मै विष पी लूंगा"
सती की भीगी आँखो में देखते हुए शिव ने कहा।
"आप तो देवो के देव है,
ऐसा कोई विष बना ही नहीं है जो आप का कुछ बिगाड़ सके।"
सती ने बहुत आत्मविश्वास के साथ शिव की बात काट दी और हंसने लगी।
"जब तुम नहीं रहोगी तो ऐसा विष बनेगा,
वो चाहे आकाश की ऊंचाइयों को गूथ कर बने या समुद्र की गहराई को मथ के बने,
पर ऐसा विष बनेगा सती।"
शिव ने सती के मुस्कराते होठो की तरफ देखते हुए सूनी आंखो से कहा।
"अगर ऐसी बात है प्रभु तो मेरा भी वादा है,
मेरे रहते हुए किसी भी विष का एक कतरा भी आपके गले के नीचे नहीं उतर पाएगा।"
सती ने शिव की मजबूत हथेलियों को अपनी हथेलियों में छुपाकर कहा।
"अच्छा,
अभी तो तुमने पूछा कि जब मै नहीं रहूंगी तब क्या करूंगा मैं,
और अभी खुद ही कह रही हो कि आकर रोक दोगी मुझे,
बताओ यही समझदारी है तुम्हारी?"
सती के बचपने भरी बातों को सुनकर हंसते हुए शिव ने कहा।
"मै रहूंगी प्रभु,
इस रूप में या किसी रूप में,
मै आपसे अलग होकर भी आप के पास ही रहूंगी हमेशा,
क्युकी मै प्रेम हूं आपका,
और प्रेम कभी अलग नहीं हो सकता।"

ॐ नमः शिवाय