पहले एक चुटकुला सुनिए।
एक व्यक्ति का दाहिना हाथ किसी दुर्घटना में कट गया। उसे डिप्रेशन हो गया। लगा सोचने कि जी कर क्या करूँ, लोग लुल्हा कह कर चिढ़ाते हैं... उसने सोचा कि आत्महत्या कर लेता हूँ, मुक्ति मिल जाएगी। फिर उसने सोचा कि जब मरना ही है तो शान से मरें, सो तय किया कि पटना के सबसे ऊंचे टावर बिस्कोमान भवन पर से कूद जाता हूँ।
अगले दिन वह बिस्कोमान भवन पर चढ़ गया। ऊपर से वह कूदने ही वाला था कि नीचे देखा, "एक आदमी जिसके दोनों हाथ नहीं थे, वह उछल उछल कर नाच रहा था।" लूल्हे ने सोचा, "साला मेरा हाथ नहीं है तो मैं मरने जा रहा हूँ, और इसके दोनों नहीं हैं फिर भी नाच रहा है? यह कैसे हो सकता है? उसने कहा, "मरना कैंसल! पहले इस नाचने वाले से बात करते हैं, फिर सोचेंगे..."
वह ऊपर से उतरा, नाचने वाले के पास गया और डांट कर बोला, "क्यों बे! तुझे ऐसी क्या खुशी मिल गयी कि उछल रहा है? तेरे दोनों हाथ नहीं है फिर भी नाच रहा है, कैसे?"
उसने गुर्रा कर देखा और कहा, "साले! तेरे भी दोनों हाथ कट जाएं और पिछवाड़े में खुजली हो तो तू भी ऐसे ही नाचेगा..."
यह जिन्दगी जो है न! किसी को परफेक्ट नहीं बनाती। पैजामा देती है तो नाड़ा खींच लेती है। यहां सबकी शर्ट का एक न एक बटन टूटा ही हुआ है। फिर भी यह कम सुन्दर नहीं। इतनी सुन्दर है कि इससे इश्क कर लिया जाय।
जीवन में यदि उपलब्धियों के कारण घमण्ड होने लगे तो अपने से आगे वाले को देखना चाहिए, और यदि विपत्तियों के कारण अवसाद घेरे तो पीछे वालों को... आप ना ही सबसे आगे हो सकते हैं, न ही सबसे पीछे... हम सब बीच में हैं, अपने अपने हिस्से की उपलब्धियों के साथ। इस जीवन में हमें जो चीज सबसे अधिक बुरी लगती है, वह भी तभी तक है जबतक जीवन है। जीवन न रहे तो वह भी नहीं मिलेगी... सो क्यों न मुस्कुरा कर जीयें?
जीवन फुटबॉल या हॉकी नहीं है, जो एक बार चूक गए तो आगे गोल मार देंगे। जीवन क्रिकेट की तरह है, एक बार बॉल विकेट को छू गयी तो कुछ भी कर लो दुबारा बैट पकड़ने का मौका नहीं मिलेगा। जिंदगी बार बार बाउंसर मारती है, पर हमारी ड्यूटी है कि हम उसको रोकते रहें। न लगे छक्का-चौका, सिंगल ही सही... वह भी न मिले तो ओभर चाट जाना भी बुरा नहीं। अरे पचास ओवर तो केवल इस उम्मीद पर खेले जा सकते हैं कि कहीं अगली बॉल फुलटॉस आ जाय... मजा खेलने में है, रन तो बाद की बात है।
क्रिकेट का ही एक किस्सा है, शायद इंग्लैंड के विरुद्ध ओपनिंग करने उतरे थे सुनील गावस्कर... उस दिन उनसे रन ही नहीं बन रहे थे। पूरा का पूरा ओभर बिना रन के चला जाता। हार कर उन्होंने कैच उठाया पर फील्डर मुस्कुरा मुस्कुरा कर कैच भी छोड़ देते... गावस्कर साठ ओवर के खेल में अंत तक नॉट आउट रहे और रन बनाए 36. गावस्कर भले अपनी इस पारी को याद करना न चाहें, पर यह पारी भी एक तरह की विश्व रिकार्ड ही है।
सच पूछिए तो फेल होने का भी अपना एक अलग ही मजा है। कल्पना कीजिये कि किसी अखाड़े में हारने वाला पहलवान धूल झाड़ कर खड़ा हो और जितने वाले को आँख मार कर मुस्कुरा दे... एकाएक सारे दर्शक होहकार लगाते हुए उसकी ओर हो जाएंगे। जीवन को ऐसे भी जिया जा सकता है।
कुछ लोगों में टॉप करने की जिद्द होती है। फोकट का टेंशन देती है यह जिद्द...आप देश के सारे प्रधानमंत्रियों के बारे में पढ़ लीजिये, उनमें से कोई स्कूल टॉपर नहीं रहा होगा। आप अपने राज्य के मुख्यमंत्रियों को ही देख लीजिए, कोई स्कूल टॉपर नहीं मिलेगा... कोई बड़ा उद्योगपति स्कूल टॉपर नहीं रहा होगा... यह सिद्ध करता है कि किसी एक फील्ड में फेल होने का मतलब यह नहीं कि सारे रास्ते बंद हो गए। पिच पर डटे रहे तो किसी न किसी गेंद पर छक्का लग ही जायेगा। पिच पर डटे रहना महत्वपूर्ण है।
एक बात और! अवसाद का दौर कभी न कभी सबके जीवन में आता है... पर परिवार और समाज मिल कर हमेशा अवसाद से बाहर निकाल देते हैं। परिवार और समाज की आवश्यकता सबसे अधिक इसी दिन के लिए है। सो अपने परिवार से, समाज से जुड़ कर रहना ही बेहतर है। भारतीय सिनेमा भले समाज के विरुद्ध असँख्य जहरीले डायलॉक गढ़ दे, सच यह है कि समाज किसी को मरने के लिए नहीं छोड़ता... किसी न किसी रूप में साथ खड़ा हो ही जाता है।
यह जिन्दगी बहुत खूबसूरत है ब्रो! इतनी खूबसूरत कि एक जन्म तो केवल स्वरा भाष्कर के लिए जी लिया जाय। गाँव में तो कुछ बूढ़वे साले केवल इसलिए जीते हैं कि गाँव भर को परेशान कर सकें...
सो मुस्कुरा कर कहिये, लभ यू जिंदगी! हारेंगे तो हुरेंगे, जीतेंगे तो थुरेंगे...