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हिंदुत्व समझो अभियान : चैप्टर 3
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हिंदुत्व की आत्मा व भाव और
वेद की आत्मा की विस्मृति

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हिंदुत्व की आत्मा है यह रियलाइजेशन के 'मुझमें शिव होने की संभावना है '

और इसी आत्मा से निकलता है हिंदुत्व का मूल भाव ... हिंदुत्व का मूल भाव है - स्वतंत्रता ।।

यह स्वतंत्रता कोई उच्छऋंखलता नहीं है - यह जिम्मेदारी है - स्वतंत्र बने रहने की ज़िम्मेदारी और जीवन की पूरी सामर्थ्य को जीने की ज़िम्मेदारी ।

इसी स्वतंत्रता के कारण हिन्दू स्वतंत्र है अपने अपने व्यक्तिगत तरीके से honestly ईश्वर को ढूंढने में - इसीलिये तो हमारे यहाँ चार्वाक दर्शन , सांख्य दर्शन , न्याय दर्शन इत्यादि दर्शन प्रचलित हैं - और उन दर्शनों के अतिरिक्त भी बहुत सारे मत व सम्प्रदाय प्रचलित हैं ...

किन्तु वे सभी मत व सम्प्रदाय एक मूल भाव और एक मूल आत्मा के विषय में बात करते हैं ...

आज समय की मांग है कि जब वेदांत, षड दर्शन इत्यादि होने पर भी हमारे समाज में आत्मा का लोप हो गया है तो वह सिस्टम उठाया जाए जिसने हमारी पूरी सँस्कृति की नींव रखी है ...

समय है कि वेदों को समझने से पहले वेदों की नींव को समझा जाये - अक्षरों को समझा जाए ... ये समझा जाए कि ये अक्षर आते कहाँ से हैं और कौन पैदा करता है इन्हें ...

क्योंकि ... यह प्रलय की स्थिति है : जहां भाई भाई को मार रहा है , हिन्दू हिन्दू की जान का दुश्मन बना बैठा है - वास्तविक ज्ञान के अभाव में लोग मनमानी व्याख्याएं दे रहे हैं शास्त्रों की ...

अब हमें किसी एक सिस्टम पर, भले ही कुछ समय के लिये, आश्रित होना होगा - जब तक हम अधिकतम हिंदुओं में अपने धर्म के प्रति एक वास्तविक चेतना का निर्माण नहीं कर देते ... और तब कहीं जाकर वेद दोबारा सुने जा सकेंगे ... फिर से वैदिक सभ्यता का उदय होगा ...

लेकिन तब तक हमें यह समझना होगा कि वैदिक ज्ञान का लोप हो चुका है - तभी तो हिन्दू समाज क्षत विक्षत पड़ा है ...
और विश्वास मानें - वेदों की आत्मा तो कब की विस्मृत हो चुकी है ... अब केवल शरीर ही लेकर घूम रहे हैं वेद पढ़ाने वाले ..

इसीलिये हमें न तो उस ब्रह्मास्त्र का ज्ञान है न पाशुपतास्त्र का और न मृत संजीवनी विद्या का , न मनोजव से आकाशगमन का और न ही मन्त्र फलीभूत होते दिखते हैं ...

इसलिये बेहतर है कि हम वहाँ से शुरू करें जहां से सारी पॉसिबिलिटी हैं - हम शुरू वहाँ से करें समझना जहां से हमारी सुप्त चेतना में कुछ प्राण आएं ...
इसलिये हमें शुरू करना होगा देवाधिदेव महादेव के दिये हुए तंत्र से ...
उन महादेव के दिये हुए ज्ञान से शुरू करना होगा जो वैदिक ऋषियों के गुरु हैं - जिनके दिए हुए ज्ञान से ही वैदिक ऋषि इस योग्य हुए कि वे वेद को सुन पाएं ...

हमें नए सप्तर्षियों के आने का मार्ग प्रशस्त करना होगा ...

तभी हम वेद दोबारा प्राप्त कर पाएंगे ..

जारी है ...

नमः परमशिवाय
मनन