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भैरवाष्टमी पर विशेष : शिव और अशिव
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शिवत्व का अर्थ : यह अनुभव हो जाना कि मैं न तुच्छ हूँ और न उच्च , न ज्ञानी हूँ और न अज्ञानी , न साधारण हूँ और न असाधारण ... इन शॉर्ट एंड सिंपल टर्म्स - मैं शिव का ही एक रूप हूँ और जो कुछ भी वास्तविक इस संसार में व्याप्त है - मैं उससे अलग नहीं हूँ ...

यहाँ ध्यान देने वाली बात है - "जो कुछ भी संसार में वास्तविक है "
'वास्तविक' मतलब क्या ?!

वास्तविक मतलब रियल ... जैसे आप कहें कि कैथोलिक क्रिश्चियनिटी में कुछ वास्तविक है - तो भाइयों ऐसा है नहीं... वह केवल एक व्यक्ति द्वारा रची गई सामाजिक- आर्थिक-राजनैतिक-सामरिक व्यवस्था है ... व्यवस्थाएं वास्तविक नहीं होतीं ... वह तो केवल एक ढंग है चीजों को एक पर्टिकुलर तरीके से सजाने का-
जैसे आपके सामने घर में पड़ा हुआ फर्नीचर शत प्रतिशत वास्तविक है ... किन्तु उस फर्नीचर को सजाने की आपकी जो इंटीरियर डेकोरेशन की व्यवस्था है - वह वास्तविक नहीं है ...
फर्नीचर को किसी पार्टिकुलर तरीके से सजा कर आप किसी की हत्या तक कर सकते हैं !
तो हत्या फर्नीचर ने की ?! या व्यवस्था ने ?!

जी - व्यवस्था ने की हत्या लेकिन व्यवस्था तो वास्तविक है ही नहीं !
जी , बिल्कुल वास्तविक नहीं है व्यवस्था - उसका अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है ... वह केवल आपके मन में उपजा एक खास तरीका है .. जो वास्तविक चीजों को जोड़ तोड़ कर कुछ होना या न होना घटित करवाता है !

और वह है भी नहीं !!

वास्तविक न होते हुए भी इफेक्ट डालना - ये अशिव है ...
सहज शिवत्व की जो विस्मृति पैदा करे - वह अशिव !

क्रिश्चियनिटी केवल एक व्यवस्था है - जो वास्तविक चीजों के बल पर अस्तित्व में है ... उसका स्वयं का कोई अस्तित्व नहीं है ...

और वास्तविक कौन है ?! वास्तविक है शिव - जिसमें मनुष्य , पेड़ ,पौधे , नदी , पहाड़ , पशु पक्षी सभी आते हैं ...

शिव हत्या नहीं करता - शिव वध करता है - हिंसक अशिव को फैलने से रोकने के लिये शिव वध करता है उन फैक्टर्स का - जिनपर अशिव निर्भर करता है ... जब फैक्टर्स समाप्त तो अशिव समाप्त ..

शिवत्व इस बात का अनुभव है कि शिव व्यापक है - और चूंकि वह व्यापक है तो वह मुझमें भी व्याप्त है - समस्त चराचर जीव जगत शिव से स्पंदित है ... भोग भी शिव और भोगने वाला भी शिव ...
इतनी सिंपल सी बात है ...

लेकिन यह समझने की नहीं अपितु अनुभव करने की बात है ...

जैसे कोई जन्मांध पूछे कि प्रकाश क्या है ?!

आप उसे कितना भी बता लें कि प्रकाश ऐसा है या वैसा है - उसे क्लियर नहीं होयेगा ... क्लियर करने के लिये उसे स्वयं को अंधेपन से बाहर निकालना होयेगा , बोले तो अपनी आंखों का ऑपरेशन करवाना होयेगा ... तभी उसकी दृष्टि जाग्रत होगी ...
देवाधिदेव महादेव ने स्वयं शिवसूत्रों में से दूसरे सूत्र में कहा है - "ज्ञानं बन्ध: " जिसका यहाँ पर आशय इस बात से समझा जा सकता है कि यदि किसी जन्मांध को आप बोल बोलकर प्रकाश का तथाकथित ज्ञान दे रहे हैं - तो वह तथाकथित ज्ञान ही उसकी सबसे विकट समस्या बन जाएगा ... क्योंकि उसने स्वयं अनुभव नहीं किया है प्रकाश का - फिर ऐसी अंधेपन की स्थिति में आपके द्वारा दिये गए उसके प्रश्नों के उत्तर उसको आनन्द न दे पाएंगे - अपितु आनन्द से दूर ही ले जाएंगे ... और वह प्रश्न पर प्रश्न करता रहेगा ... और अर्थ का अनर्थ करता रहेगा ... क्योंकि उसने अनुभव करने के लिये स्वयं उद्यम किया ही नहीं (ऑपरेशन करवाया ही नहीं )
जैसे मैंने आपको शिवत्व के सीधे साधे स्वरूप का सरलतम वर्णन कर दिया है - अब आपके पास दो रास्ते हैं ... या तो आप इस वर्णन को सुन कर इस स्थिति को प्राप्त करने के लिये उद्यम कर सकते हैं (तंत्रयोग इत्यादि)और उस उद्यम के थ्रू यह शिवत्व का अनुभव स्वयं प्राप्त कर सकते हैं या केवल बौद्धिक जुगाली के लिये आप प्रश्न पर प्रश्न पूछ सकते हैं ...

मैं तो उत्तर देता ही हूँ ... आपको भी दे दूंगा और उत्तर ...
लेकिन यह आपको डिसाइड करने का है कि शिवत्व आपको रियलाइज़ करना है या केवल उसके विषय में मुझसे प्राप्त ज्ञान पर आश्रित रहना है ...

सीधी बात ..नो बकवास

नमः परमशिवाय
मनन

Manan N