एक संघी और मर गया।
एक और हिन्दूवादी चेहरा काल के गाल में समा गया।
वामपंथियों के गढ़ में हिंदुत्व की एकमात्र आस #तपन_घोष चले गए।
1975 से 2007 तक बंगाल में 32 वर्षो तक लगातार #संघ के प्रचारक रहे तपन घोष ने संघ की हिंदू विरोधी नीतियों के चलते 2007 में संघ को छोड़ अपना अलग संगठन बनाया... कट्टर हिन्दुवादी संगठन...."हिंदू समहती"।
मात्र कुछ सौ लोगों के साथ गठित किये जाने के बाद, उनके नेतृत्व में यह संगठन पश्चिम बंगाल के सभी जिलों में फैल गया था यहां तक कि झारखंड और असम में भी इसकी ब्रांच खोली गई थी।
ये तपन दा की जमीनी मेहनत के प्रयासो का ही परिणाम था कि कभी बंगाल में एक सीट पाने वाली #भाजपा का कमल 2019 के चुनाव में 43 प्रतिशत वोटो के साथ 18 सीटो पर खिल उठा।
अपनी पूरी जिंदगी हिंदुत्व के लिए न्योछावर कर देने वाले तपन दा को मेरी भावभीनी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।
पर, पर, पर ...
जिस तपन दा के अथक प्रयासो के चलते आज भाजपा बंगाल में हिंदुओ की एकता के बल पर बराबर की राजनैतिक प्रतिद्वंदी बन गयी है क्या उस तपन घोष को भाजपा ने श्रदाँजलि दी ?!
#इरफ़ान_खान से लेकर #ऋषि_कपूर तक की मौत पर आंसू बहाने वाले हम सब के सर्वकालिक सर्वप्रिय हिन्दूवादी #मोदी जी ने क्या तपन दा को, ट्वीट कर के भी, श्रंद्धांजलि दी ??
32 वर्षो तक संघ के प्रचारक बन अपनी पूरी जवानी संघ को समर्पित कर देने वाले तपन दा को क्या संघ ने श्रद्धांजलि दी ?
क्या #भाजपा_अध्यक्ष सहित किसी मंत्री ने तपन दा को श्रद्धांजलि दी ??
क्यूँ ऐसा क्यूँ ???
आखिर क्यूँ ??
किससे डरते हैं ये सब लोग एक हिन्दूवादी का नाम लेने में भी ??!!
इनको हिंदुओ के वोट चाहिये, हिंदू कार्यकर्ता चाहिये, रमजान में पोटली बांटने के लिये मुफ्त के हिंदू नौकर चाहिये, कश्मीर केरल की बाढ़ में NGO चलाने के लिये कर्मठ और समर्पित हिंदू युवा चाहिये.....
पर, पर मर जाए तो इनको सेक्युलरिज्म का कीड़ा ऐसे काटता है कि श्रद्धांजलि के दो अक्षर लिखने में इनको अपनी कुर्सी हिलती दिखने लगती है।
सच में राजनीति बड़ी कुत्ती चीज है।
और हिंदू राजनेता.....कभी कभी तो लगता है कि ये सब के सब हिंदुत्व के लिए #पिस्सुओ से अधिक कुछ भी नहीं।
भाजपा के बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय के बेटे #आकाश_विजयवर्गीय के बल्ले की आवाज ने 7 लोक कल्याण मार्ग के बंगले की दीवारो को हिला कर रख दिया था.....
पर अफसोस हिंदू नायक और बंगाल में भाजपा को अप्रत्याशित जीत दिलाने वाले तपन घोष की जलती चिता की तपिश दिल्ली तो छोड़ो बंगाल तक में भी महसूस ना की जा सकी।