Uday Dhayal's Album: Wall Photos

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#भारत_भूमि_का_प्रतिकार
#महान_योद्धा_को_जन्मजयंती_पर_शत्_शत्_नमन्
प्रतिकार की आवश्यकता पड़ती ही क्यों है? आखिर क्यों कोई सभ्य समाज समर भूमि में उतरने को विवश हो जाता है?
देखा जाए तो सृष्टि के आदि से ही यह द्वन्द्व बना हुआ है। कुछ समूह बल के दर्प में सृष्टि नियमों के विरुद्ध कार्य करते हैं तो फिर सज्जन शक्तियों को इसका प्रतिकार करने के समय भूमि में उतरना पड़ता है।
भारत में देवासुर संग्राम से लेकर ब्रिटिश शासन से संग्राम तक का इतिहास इसी संग्राम का इतिहास है। शस्य श्यामला यह भूमि लाखों वर्षों से भारततेतर जातियों के लिए अबूझ पहेली बनी रही। ज्ञानपिपासुओं ने बार बार यात्रा कर अपने ज्ञान की प्यास बुझाई तो बल के दर्प में कुछ लड़ाकुओं ने यहां आक्रमण कर हमारे सामर्थ्य की परीक्षा लेनी चाही। अधिकांश पराभूत हुए,चाहे वह सिकंदर रहा हो या कोई और हमने किसी के पांव जमने नहीं दिए।
जहां तक ब्रिटिश लोगों की बात है,यह कोई बहुत बड़े योद्धा नहीं थे,व्यापारी थे। झूठ,फरेब और कपट से इन्होंने यहां भारत भूमि के कुछ भागों को अधिकृत कर लिया था। जिसके विरुद्ध हमारा प्रतिकार १८५७ से शुरू हो गया जो ९० वर्षों तक चला।
जिन महान् भारतीय सपूतों ने इस प्रतिकार में अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया, उनमें श्री #चंद्रशेखर_तिवारी (आजाद) अग्रगण्य हैं।
भारत में,उस समय अंग्रेजी पढ़े लिखे भारतीयों का कुछ प्रभाव हो गया था। जो कांग्रेस नामक संगठन बनाकर अंग्रेजों से कुछ सुविधाएं प्राप्त करने के लिए जलसे आदि कर लिया करते थे। किंतु उस समय चंद्रशेखर आजाद और कुछ और भारतीय युवक सशस्त्र युद्ध कर ब्रिटिश शासन को पूर्णतया हटा देना चाहते थे। और इसके लिए इन मुट्ठीभर संकल्पवान युवाओं ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। अपनी सामर्थ्य से अधिक लड़े। भारत की स्वाधीनता को लेकर अपने विचार रखे।
किंतु यह देश का दुर्भाग्य है कि अंग्रेजों के साथ मित्रता रखने वाले लोग १९४७ में भारत शासन में आ गए और उन्होंने अपनी पीठ अपने हाथों थपथपा ली। एक झटके में स्वाधीनता समर में विजय का सारा श्रेय गांधी और उनकी मंडली ने ले लिया। जो कि यह एक बहुत ही कपटाचार जैसा है। भारतभूमि बहुत विस्तृत है, लगभग आधे यूरोप के बराबर। इसके हर हिस्से में इसकी संतानों ने हर काल में आक्रमणकारियों का प्रतिकार किया,अपना सर्वस्व लुटाया। इसलिए सभी मूल्यवान हैं।

इसलिए भारत में जिन लोगों ने अंग्रेजों से सशस्त्र मोर्चा लिया,वे तो दूसरों से कहीं अधिक वंदनीय है, पूजनीय हैं। पिछले ७० वर्षों में इनकी उपेक्षा ही हुई है, जो अब रुकनी चाहिए। हमारी पीढ़ी का यह कर्तव्य बनता है कि हम हमारे इन पूर्वजों का भारतीय इतिहास में जो स्थान बनता है,उसे देकर कृत्य कृत्य हों और इनसे प्रेरणा लेकर अपने समाज जीवन को सदैव जागृत करते रहें ताकि जब भी भारत की ओर वक्र दृष्टि से देखने का दुस्साहस करे तो हम आगे बढ़कर उसका सफल प्रतिकार कर सकें।।