Uday Dhayal's Album: Wall Photos

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मध्यप्रदेश के वनवासी क्षेत्र #झाबुआ_के_निवासियों को आग से खेलने का बड़ा शौक है... वे जन्मजात साहसी, दिलेर और इतने आत्मविश्वासी होते हैं कि शेर सामने आ जाए तो उससे भी दो-दो हाथ करने में उनको कोई परेशानी नहीं होती है... दुश्मन चाहे जितना शक्तिशाली और खौफनाक हो झाबुआ के वनवासी भील योद्धा कभी भी मैदान छोड़कर नहीं भागते हैं...।

वीरों की इसी जमीन पर भाबरा में पले-बढ़े चंद्रशेखर आजाद में स्वाभाविक रूप से यह सारे संस्कार जन्मजात रूप से मौजूद थे... उन्होंने भीलो से धनुर्विद्या में सटीक निशाना लगाना भी बचपन में ही सीख लिया था... स्वदेशी आंदोलनकारियों को जब ब्रिटिश पुलिस मार रही थी तब एक पुलिस वाले पर चंद्रशेखर आजाद ने क्रोधित होकर पत्थर से ऐसा सटीक निशाना लगाया कि वह खून से लथपथ होकर जमीन पर गिर पड़ा ...इसकी सजा उन्हें बेंतो के रूप में मिली, लेकिन निर्भीक आजाद ने हर बेंत के साथ भारत माता की जय का जयकारा लगाया पर अपने मुंह से पीड़ा की एक सिसकारी तक नहीं निकलने दी...।

एक दिन वह अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ जंगल से गुजर रहे थे... आजाद का निशाना अचूक था... सब साथियों ने उनसे मजाक में कहा कि-
"वह देखो... दूर पेड़ पर एक पत्ता दिखाई दे रहा है.. क्या तुम उस पर अपनी पिस्तौल से निशाना लगा सकते हो?"

मित्रों की बात पर आजाद ने एक के बाद एक 5 गोलियां दाग दी लेकिन वह पत्ता तब भी वहां लटक रहा था ...आजाद के साथियों ने उनका मजाक बनाया कि देखो तुम्हारा निशाना खाली चला गया... थोड़ी देर बाद आजाद और उनके साथी पेड़ के पास गए और उस पत्ते को देखने लगे जिस पर उन्होंने निशाना लगाया था...जब उन्होंने पत्ते को देखा तो पता चला की पत्ते में 5 छेद हो चुके थे ...आजाद का निशाना एकदम अचूक था...।

आजाद की मां जगरानी देवी अपने बेटे के देश भक्ति से भरे इरादों से पूरी तरह परिचित थी एक दिन वे आजाद से बोली कि-
"आज से तू अंग्रेजों का विरोध मत कर वह बड़े निर्दयी है जो उनके रास्ते में रोड़ा बनता है उसे वे मिटा देते हैं ...इसलिए तू अंग्रेजो के खिलाफ कोई भी आंदोलन मत कर।"

मां के स्नेह और चिंताओं को समझते हुए चंद्रशेखर आजाद बोले-
"मैं कायरों की तरह जीना नहीं चाहता मां... मेरा सिर अंग्रेजो के खिलाफ सदा उठा रहेगा... हमारे देश में करोड़ों चंद्रशेखर हैं ...एक चंद्रशेखर अंग्रेजों के हाथ से मरेगा तो कई चंद्रशेखर पैदा हो जाएंगे और अंग्रेजी साम्राज्य की ईंट से ईंट बजा देंगे।"

मातृभूमि पर मर मिटने के जज्बे से आजाद की मां भी अभिभूत हो गई ...वह अपने बेटे के सर पर हाथ फेरते हुए बोली-
"जा बेटा भारत मां की आजादी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दें...।"

काकोरी ट्रेन लूट के बाद उनके कुछ साथी पकड़ लिए गए और पुलिस आजाद को भी पकड़ने के लिये तलाश रही थी ...आजाद को पकड़ने के लिए ब्रिटिश सरकार ने एक पुलिस अधिकारी #तसद्दुक_हुसैन को उनकी खोजबीन में लगा दिया... तसद्दुक हुसैन रात दिन चंद्रशेखर आजाद की खोज में जुटा रहता ...पहले तो आजाद ने उसे गोली से उड़ा देने की सोची लेकिन पुलिस अधिकारी के हिंदुस्तानी होने की वजह से उन्होंने अपना निर्णय बदल दिया ...एक दिन आजाद स्वयं तसद्दुक हुसैन के सामने आ गए और उसकी कनपटी पर पिस्तौल लगाते हुए बोले-
"बता इंस्पेक्टर क्या चाहता है तू...? यदि आज के बाद तूने मेरा पीछा करने की कोशिश की तो मैं तुझे जान से मार दूंगा...।"

पुलिस अधिकारी डर के मारे थर थर कांपने लगा... वह चुपचाप वहां से चला गया फिर कभी उसने आजाद का पीछा नहीं किया...।

देश भक्ति और इमानदारी आजाद में इतनी भरी थी कि अपने माता-पिता के इलाज के लिए उनके पास पैसे नहीं थे और जो पैसा उनके पास आता था उससे वे कारतूस खरीदते थे...पर उसे वे अपने स्वयं के निजी उपयोग के लिए व्यय नहीं करते थे...।

एक बार उनका एक साथी नाश्ते के लिये चंदे से मिली हुई राशि से डबल रोटी खरीद लाया तो उन्होंने नाराजगी दिखाते हुए कहा कि-
"हमे आम जनता चंदा और पैसा हथियार और गोली खरीदने के लिये देती है...हम एक-एक पैसा जोड़कर कारतूस और पिस्तौल खरीदते हैं... इसलिए आज के बाद चंदे के पैसे से खाने पीने की वस्तुएं नहीं आना चाहिए...।"

साइमन कमीशन का विरोध करते हुए लाला लाजपत राय की अंग्रेजों ने जब लाठी डंडों से पीटकर हत्या कर दी तो क्रांतिकारियों का खून खौल उठा... चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और बाकी क्रांतिकारी साथियों ने इस हत्याकांड के जिम्मेदार सांडर्स को सबक सिखाने का निश्चय किया...राजगुरु ने सांडर्स को निशाना बनाकर उसके पुलिस कार्यालय के सामने ही उसे ढेर कर दिया...भगत सिंह और और राजगुरु जब सांडर्स को ठिकाने लगा कर भाग रहे थे तो ब्रिटिश पुलिस उनको पकड़ने के लिए पीछे पड़ गई तब चंद्रशेखर आजाद ने अकेले ही पूरी ब्रिटिश पुलिस को रोक लिया और आमने-सामने की फायरिंग में अपने अचूक निशाने से एक पुलिस वाले को गोली से उड़ा दिया... इस प्रकार अकेले आजाद ने ही अपनी जान जोखिम में डालकर अपने क्रांतिकारी साथियों की रक्षा की...।

भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी की सजा से आजाद बहुत दुखी हो गए ...दुख से संतप्त आजाद का तब वीर सावरकर ने हौसला बढ़ाया और निराश ना होकर अपने उद्देश्य पर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी ...।

आजाद अपने साथियों को जेल से छुड़ाने की रात दिन योजना बनाते रहते थे और इस योजना की सफलता के लिए वे धन की व्यवस्था करने लग गये...वे #कांग्रेस_के_अनेक_शीर्ष_नेताओं_से_भी_मिले पर उनकी #नकारात्मक_भीरुता_और_अहिंसावादी_सोच से आजाद बहुत दुखी हो गए... ।

तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी आजाद ने हार नहीं मानी और भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को जेल से भगा लेने की योजना बना ली... लेकिन ब्रिटिश सरकार ने तो उन्हे गुपचुप तरीके से फांसी पर चढ़ाने की योजना बना ली थी...।

फरवरी 1931 में चंद्रशेखर आजाद गणेश शंकर विद्यार्थी से मिलने सीतापुर जेल गए तो विद्यार्थी ने उन्हें इलाहाबाद जाकर जवाहरलाल नेहरू से मिलने को कहा... चंद्रशेखर आजाद जब भगतसिंह और साथियों की रिहाई के लिये नेहरू से मिलने आनंद भवन गए तो नेहरू ने आजाद की बात सुनने से ही इनकार कर दिया... आजाद गुस्से से भर गए वहां से निकलकर अपने साथी सुखदेव राज के साथ अल्फ्रेड पार्क चले गए...।

वह सुखदेव के साथ आगामी योजनाओं के बारे में विचार विमर्श कर ही रहे थे कि एक #भेदिये_की_सूचना_पर पुलिस ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया ...आजाद ने तब अपनी पिस्तौल निकालकर दनादन गोलियां दागनी शुरू कर दी ...आजाद ने सुखदेव को तो भगा दिया पर स्वयं अंग्रेजों का अकेले ही सामना करते रहे ...दोनों ओर से भीषण गोलीबारी होने लगी लेकिन जब चंद्रशेखर के पास केवल एक गोली बची तो उन्हें आभास हो गया कि अब अंग्रेज पुलिस का सामना करना कठिन हैं परन्तु उन्होंने पुलिस के सामने समर्पण करने से इनकार कर दिया... क्योंकि चंद्रशेखर आजाद ने यह प्रण लिया था कि #वह_कभी_भी_जीवित_पुलिस_के_हाथ_नहीं_आयेंगे ...।

इसी प्रण को निभाते हुए अल्फ्रेड पार्क में 27 फरवरी 1931 को उन्होंने वह बची हुई गोली स्वयं के सिर में दाग कर आत्मबलिदान कर लिया पर पुलिस के हाथ नहीं आए...पुलिस के अंदर चंद्रशेखर आजाद का इतना भय था कि किसी की भी उनके मृत शरीर के पास जाने की हिम्मत नहीं हुई ...ब्रिटिश पुलिस ने तब उनके मृत शरीर पर ही अनेक गोलियां चलाई और जब वह पूरी तरह आश्वस्त हो गए कि अब चंद्रशेखर आजाद जीवित नहीं बचे होंगे तभी वे उनके शरीर के पास पहुंचे...।

चंद्रशेखर आजाद ने अपनी मृत्यु से बहुत पहले ही यह कह दिया था कि- "वे आजाद हैं और आजाद ही रहेंगे ...अंग्रेजों में इतना सामर्थ नहीं कि वह मुझे मार सके...।"

वे अंत समय तक अपने प्रण पर अडिग रहें...।

पुण्यतिथि पर सादर नमन्...।
Dhiraj Bhargava