योग दिवस पर
सेल्फी के लिए नहीं, सेल्फ के लिए योगाभ्यास कीजिए।
योग में हर व्याधि का उपचार नहीं है। अगर कोई ऐसा कहता है तो ग़लत कहता है, क्योंकि योग कोई उपचारात्मक विज्ञान नहीं है। अगर जीवनशैली ठीक हो जाएगी तो रोग स्वत: दूर हो जाएंगे। लेकिन अगर जीवनशैली ठीक नहीं होगी, तो आप कितने ही प्रयास क्यों न करो, ठीक होने के बाद दुबारा गिरोगे। इसलिए योग को हम एक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति नहीं मानते, जैसे आज का समाज मानता है। हमारे गुरुजी हमेशा यह बात कहते थे कि तुम योग द्वारा अपने आप को ठीक भले ही कर लो लेकिन तुम्हारी योग यात्रा समाप्त नहीं होनी चाहिए। उसके आगे भी तुम्हें चलते रहना है।
व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए योग में आता है। एक महीने, दो महीने, छह महीने, साल भर योगाभ्यास करता है और फिर छुट्टी। फिर चार-पांच साल बाद जब दुबारा स्वास्थ्य गिरने लगता है, कमज़ोर होने लगता है, तब सोचता है, जब मैं योगाभ्यास करता था तब मुझे अच्छा लग रहा था। अब क्यों न मैं फिर से शुरू कर दूं? इसे योग साधना नहीं कहते । तुम योग के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए नहीं, बल्कि अपने ही प्रयोजन को सिद्ध करने करने के लिए अभ्यास कर रहे हो। आज जितने भी योग के केंद्र हैं, वे सब योगाभ्यास के केंद्र हैं, योग साधना केंद्र नहीं ।
यौगिक दृष्टिकोण से दैनिक अभ्यास के लिए पांच आसन ही पर्याप्त हैं। ताड़ासन, तिर्यक ताड़ासन, कटिचक्रासन, सूर्य नमस्कार, संर्वांगासन।
जीवनशैली बदलिए। क्या वो आपके बस में है? अगर नहीं तो योग आपके बस में नहीं हो सकता? फिर भी योग करते रहिए। सेल्फी के लिए नहीं। सेल्फ के लिए। अभ्यास से आगे जाइये। योग का सच्चा साधक आत्म प्रचार नहीं करता। वह भीड़ नहीं बनाता है। वह एकांत प्राप्त करता है।
योग आत्मबल का विकास करता है। योग आपको जीवन के सत्य के मार्ग पर ले जाता है। साहस भरता है। मिथ्या और माया से दूर रहने की प्रवृत्ति का विकास करता है। हर नागरिक को योगी होना होगा। जब भी आप योग करें, पूरे दिन और पूरे जीवन के लिए करें। आप मन से सफ़ल होंगे। मन आपका चंचल नहीं रहेगा। जीवन को रिमोट की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।