निर्मल चैतन्य's Album: Wall Photos

Photo 62 of 130 in Wall Photos

【लक्ष्यको वेधने (परमात्मा की प्राप्ति) के लिये ॐकार रूपी धनुष और आत्मारूपी बाणसे की आवश्यकता 】

धनुर्गृहीत्वौपनिषदं महास्त्रं।
शरं ह्युपासानिशितं संधयीत।।
आयम्य तद् भावगतेन चेतसा।
लक्ष्यं तदेवाक्षरं सोम्य विध्दि।।३।।

प्रणवो धनु: शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते।
अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत्तन्मयो भवेत्।।४।।

जिस प्रकार किसी बाणको लक्ष्यपर छोड़ने से पहले उसकी नोकको तीखा और चमकीला बनाया जाता है,उसी प्रकार आत्मा रूपी बाण को उपासना द्वारा निर्मल एवं शुद्ध बनाकर उसको प्रणव रूपी धनुष पर चढ़ाना चाहिये।अर्थात आत्माको प्रणवके उच्चारण एवं उसके अर्थरूप परमात्माके चिन्तनमें सम्यक् प्रकारसे लगाना चाहिये।
उपनिषद में वर्णित प्रणव 【ॐ कार】रूपी महानअस्त्र स्वरूप धनुषको लेकर और उसी धनुषपर उपासनाके द्वारा तीक्ष्ण किया हुआ आत्मा रुपी बाण चढाएं ,फिर भावपूर्ण चित्तके द्वारा उस बाणको खींचकर उस परम् अक्षर पुरुषोत्तमको हि लक्ष्य मानकर तीर चलाये।
ॐ कार ही धनुष है,आत्मा ही बाण है और ब्रह्म(परमेश्वर)ही उस धनुर्धर का लक्ष्य है,और प्रमाद रहित मनुष्यद्वारा ही वह बींधा जाने योग्य है।अतः उसे बेधकर बाणकी तरह उस लक्ष्यमें तन्मय हो जाना चाहिए।

अर्थात आत्मा रूपी बाणको उपासनाद्वारा निर्मल एवं शुद्ध बनाकर उसको प्रणवरूपी धनुषपर भलीभाँति चढ़ाना चाहिए। आत्माको प्रणव के उच्चारण एवं उसके अर्थरूप परमात्माके चिन्तनमें सम्यक प्रकारसे लगाना चाहिये।तदनन्तर जिस प्रकार धनुषको पूरी शक्तिसे खींचकर बाणको लक्ष्यपर छोड़ा जाता है,जिससे वह पूरी तरहसे लक्ष्यको वेध सके ,उसी प्रकार यहाँ भावपूर्ण चित्तसे ओंकारका अधिक से अधिक लम्बा उच्चारण एवं उसके अर्थका प्रगाढ़ एवं सुदीर्घ कालतक चिंतन करना चाहिये जिससे आत्मा निश्चित रूपसे अविनाशी परमात्मामें प्रवेश कर जाय। ॐ कारका प्रेमपूर्वक उच्चारण एवं उसके अर्थरुप परमात्माका प्रगाढ़ चिंतन ही उनकी प्राप्तिका सर्वोत्तम उपाय है।।

【मुण्डकोपनिषद खण्ड२】

।।ॐ नमो नारायणाय।।