सा प्राह राघवं भक्त्या भक्तिं ते भक्तवत्सल।
यत्रकुत्रापि जाताया निश्चलां देहि मे प्रभो।।७९।।
त्वद्भक्तेषु सदा सङ्गो भूयान्मे प्राकृतेषु न।
जिह्वा मे रामरामेति भक्त्या वदतु सर्वदा।।८०।।
भक्तिमति माता "स्वयम्प्रभा " श्रीरघुनाथ जी को कहती है कि "हे भक्तवत्सल प्रभो! मेरा जन्म कहीं भी हो किसी भी योनि में हो मै आपको भूलूँ नही।जहाँ भी मेरा जन्म हो आप कृपा करके मुझे अपनी अविचल भक्ति दीजिये।
मेरे प्रत्येक जन्म में मेरी संगति आपके भक्तों से ही हो,संसारी लोगोंसे न हो और मेरी जिह्वा सदैव भक्तिपूर्वक "राम राम "ही रटा करे।।
【अध्यात्म रामायण किष्किन्धाकाण्ड सर्ग ६】
भक्तिमति माता स्वयम्प्रभा जी के इन पवित्र वचनों के साथ हम आप सभी के हृदयमें भगवान की अविचल भक्ति सदैव विद्यमान रहे इसी कामना सहित देवशयनी एकादशी की अनन्त शुभकामनाएं।।