हे जगन्निवास! आपके चरण कमलों के रजका स्पर्श पाकर आज मैं कृतार्थ हो गयी।यह मेरे लिये बड़े भाग्य की बात है कि आपके जिन पदारविन्दोंका ब्रह्माजी और शंकर जी एकाग्रचित्तसे अनुसंधान किया करते हैं उन्ही का आज मैं स्पर्श कर रही हूँ।
हे राम!आपकी लीलाएँ बड़ी विचित्र हैं,आपके मनुष्य भावसे सम्पूर्ण जगत् मोहित हो रहा है।आप पूर्णानन्दमय और अति मायावी हैं, क्योंकि चरणादिहीन होकर भी आप निरन्तर चलते रहते हैं।
जिनके चरण कमलके परागसे पवित्र हुई श्री गङ्गाजी,शिव और ब्रह्मा आदिको भी पवित्र करती है ।वे ही आज साक्षात मेरे नेत्रों के विषय हो रहे हैं । मैं अपने पूर्वजन्म में किये हुए पुण्यकर्मो का किस प्रकार वर्णन करूँ।
जिन्होंने परम् सुन्दर मानवदेह से मर्त्यलोकमें अवतार लिया है मैं उन धनुषधारी कमलदल लोचन भगवान श्री रामको सर्वदा भजती हूँ उनके अलावा अन्य किसीको भजना नही चाहती।
जिनके चरण कमलोंकी रजको श्रुतियाँ भी ढूँढ़ती रहती है,जिनकी नाभिसे उत्पन्न हुए कमलसे ब्रह्माजी प्रकट हुए हैं ,तथा जिनके नामामृतके स्वयं भगवान शंकर रसिक हैं,उन श्री रामचन्द्रजी का मैं अपने हृदयमें अहर्निश ध्यान करती हूँ।
जिनके अवतार चरित्रों का नारदादि देवर्षिगण ,ब्रह्मा और महादेव आदि देवेश्वरगण तथा सरस्वती जी भी ब्रह्मलोक में निरन्तर गान किया करती हैं उन्ही प्रभु की मैं शरण लेती हूँ।।