Parvesh Kumar's Album: Wall Photos

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3.7.2020.
*आप अकेले नहीं जी सकते। आनन्दित जीवन जीने के लिए, किसी के साथ मिलकर जीना होगा।*
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अकेला नहीं जी सकता। क्योंकि ठीक प्रकार से जीने के लिए जितने साधन और सुविधाएं उसे चाहिएँ; इतने साधन और सुविधाएं, वह अकेला उत्पन्न नहीं कर सकता। उदाहरण के लिए मनुष्य को जीवन रक्षा के लिए कम से कम भी तो, रोटी कपड़ा मकान तथा यात्रा के लिए यान आदि साधन चाहिएँ। इनके अतिरिक्त और भी बहुत से साधन चाहिएँ। *पानी बिजली रेडियो टेलीविजन कंप्यूटर फोन बिस्तर बर्तन आभूषण और भी घर का बहुत सा सामान चाहिए। इसके अतिरिक्त आनंद भी चाहिए। किसी मित्र का प्रोत्साहन भी चाहिए। किसी का प्रेम भी चाहिए। यह सारी वस्तुएं और सुविधाएं व्यक्ति अकेला नहीं उत्पन्न कर सकता।* इसलिए उसे अन्य मनुष्यों का सहयोग लेना पड़ता है। जब वह किसी से सहयोग लेता है, तो कुछ सहयोग देना भी चाहिए।
*केवल सहयोग लेने वाले व्यक्ति को लोग स्वार्थी कहते हैं, और उसे अच्छा नहीं मानते। उससे दूर भागते हैं। उससे व्यवहार व संबंध रखना नहीं चाहते । तब वह स्वार्थी व्यक्ति आनंदपूर्वक नहीं जी सकता। यदि उसे आनंदपूर्वक जीना है, तो अन्यों को सहयोग देना भी होगा। इसी सहयोग लेने और देने को संबंध कहते हैं।*
जब आप किसी से संबंध रखते हैं। तब उसके साथ कुछ लेन-देन करते हैं। कुछ सहयोग लेते देते हैं। इस प्रक्रिया में चालाकी नहीं करनी चाहिए। "संबंध निभाना," कोई परीक्षा पास करने जैसा नहीं है। इसमें प्रतियोगिता नहीं करनी चाहिए। हार जीत की भावना नहीं रखनी चाहिए। बल्कि संबंध को शुद्ध मन से निभाना चाहिए। ऐसा करने से दूसरे व्यक्ति से भी शुद्ध प्रेम और प्रोत्साहन मिलता है। वही आपके जीवन को वास्तव में आनंदित करता है।
तो सार यह हुआ कि *शुद्ध मन से संबंध निभाएँ। अपने से भी अधिक दूसरों को सुख देने का प्रयत्न करें। यदि आप ऐसा करेंगे, तो दूसरे अच्छे बुद्धिमान धार्मिक लोग भी आपके साथ ऐसा ही व्यवहार करेंगे। इसी का नाम वास्तविक मनुष्य जीवन है। केवल स्वार्थ सिद्धि में न तो बुद्धिमत्ता है, और न ही शांति।*
- *स्वामी विवेकानंद परिव्राजक*