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अधिकार
माता कैकयी ने अपने "अधिकार" महाराज दशरथ से मांगे उस अधिकार की पूर्ति में राम अपने "कर्तव्य" का पालन किया अपने अधिकार को त्याग कर दिया।
भारतीय जीवन दर्शन की शिक्षा की सूरूआत ही कर्तव्य पालन से होती है। कर्तव्य पालन में त्याग की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
भारतीय शिक्षा पद्धति में यदि कर्तव्य पालन की शिक्षा है तो विना अधिकार की रक्षा के कर्तव्य पालन संभव ही नहीं है।
माता कैकयी किस स्कूल में पढ़ने गयी थी यह तो हम नहीं जानते हैं, परंतु वर्तमान में शिक्षा तो "अधिकार" की ही दी जा रही है, अधिकार की आपूर्ति कैसे होगी और कौन करेगा यह नहीं पढाया जा रहा है। शिक्षा का जोर इस बात पर है कि अधिकार प्राप्त करने के लिए क्या क्या करना चाहिए।
शिक्षा - जहां तक जगत में जीवनगत है वहां तक देखने समझने से ऐसा दिखाई देता है कि मनुष्य को छोड़कर किसी दूसरे जीव के लिए शिक्षा की व्यवस्था नहीं है मनुष्य के लिए ही शिक्षा की व्यवस्था के लिए शिक्षक और स्कूल का निर्माण मनुष्य ने किया है। ऐसा कोई मानव नहीं है जिसने पहले शिक्षक और स्कूल का निर्माण किया हो और फिर उस शिक्षक और स्कूल से शिक्षा प्राप्त किया हो।
जब भी किसी व्यक्ति ने शिक्षा प्राप्त किया है उसे पहले से ही किसी न किसी रूप में शिक्षक शिक्षण संस्थान था जिसमें जिसके द्वारा शिक्षा प्राप्त किया जिससे शिक्षार्थी को बौद्धिक संपदा मिली, जो मनुष्य को दूसरे से मिला है उस पर उसका अधिकार किस न्याय से हुआ ? अतः बौद्धिक संपदा के अधिकार का नियम निर्माण करने वाले घोर आसुरी वृत्ति के चोर हैं।
भारतीय संस्कृति परंपरा में शिक्षा (ज्ञान) परमात्मा से प्राप्त हुआ जान मान कर उसे व्यक्तिगत संपदा नहीं माना और न ही उसका मुल्यांकन किया, ज्ञान विज्ञान को भगवान का मानते अनमोल कहा और उस पर सभी को प्राप्त हो ऐसी व्यवस्था किया।
यदि तथाकथित बुद्धिवादी अपने छलकपट से बाज नहीं आये तो सर्वनाश करने का ही आयोजन कर रहे हैं और उसका परिणाम कैकयी की भांति ही प्राप्त करने जा रहे हैं।
यद्यपि हम उसमें भी सकारात्मक परिणाम देखने जा रहे हैं क्योंकि यदि समर्थ राम महाभाग भी अपने अधिकार की बात करते तो हम सनातन धर्मी हिन्दू वहीं समाप्त हो गये होते आगे हमारी सनातन धर्म की परंपरा न चलती अतः हमने यह प्रकाशित किया है क्योंकि हम यह प्रकाशित करना अपना सेवा कर्तव्य मानते हैं।
"सेवा" स्वाधीन स्वतंत्र प्रभार है।

जिसे ग्रहण करना है करे, नहीं ग्रहण करे यह उनका व्यक्तिगत निर्णय है।

जय श्री राम