आओ तुमको दिखाये कि,
मेरे कल्पनाओं की उड़ान कितनी थी
बारिश की बूंदों से भीग गयी जो कस्ती,
अब विरान है वरना उस कागज की दुकान कितनी थी।।
मां कहती थी जज बनेगा मेरा बेटा
पापा भी इंजिनियर बना के छोड़ने वाले थे,
हमारे ख्वाब की चरमपंथी ये थी कि
हम भी अस्पताल में आला लटका के घुमने वाले थे
जर्जर थी पर आधार की मचान कितनी थी ।।
आओ तुमको दिखाये कि ------------
परिस्थिति की विडंबना थी
या खुद का आकलन गलत था
या लोगों को हमारी काबिलियत का अंदाजा नहीं था
या हम जिस राह पे थे , उस जमाने का चलन अलग था
अब समझ में आ रहा है कि सब्जबागी पर्दे की वितान कितनी थी
आओ तुमको दिखाये कि मेरे--------
"विनय मिश्र"