रामकृष्ण शास्त्री's Album: Wall Photos

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"सब दिन होत न एक समान"
जीवन में किसी भी प्रकार की परिस्थिति आये उसका धैर्य के साथ मुकाबला करो।
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राजा नल बडे प्रतापी राजा थे। वे सर्वगुण सम्पन्न, सदाचारी और प्रजा पालक थे। उनके द्वारा किये गये कार्यों की गाथा हर दिशा में गाई जाती थी।
पता नहीं एक दिन क्या हुआ कि राजा असावधानी वश शौचादि के बाद बिना पवित्र हुए ही संध्या वंदन करने लगे। राजा जैसे ही अपने नियमों के प्रति शीतल हुए उनकी बुद्धि मंद हो गई। बुद्धि मंद हुई तो उनके अनेक निर्णय प्रभावित होने लगे।
एक दिन वे अपने भाई और मित्र राजा पुष्कर के साथ बातों-बातों में जुआ खेलनें बैठ गए। वे हारने लगे और हारते ही चले गए। हारने के लिए अपनी पत्नी दमयन्ती के अलावा कुछ भी शेष नहीं बचा। सब कुछ दांव पर लगा दिया। नल अपनी पत्नी दमयन्ती को भी दांव पर लगाने ही वाले थे कि अच्छे विचारों ने उन्हें ऐसा करने से रोक लिया। उन्हें याद आ गया कि यह वहीं दमयन्ती है जो उनकी धर्मपत्नी हैं। जब उसके साथ विवाह हुआ था तो आशीर्वाद देने के लिए इन्द्र आदि देवताओं को भी आना पडा था।
लेकिन जब तक उनके मन में अच्छे विचार आते, तब तक तो वे अपना सर्वस्व खो चुके थे। जुए में सब हारने के बाद अपना भरा-पूरा राजपाट छोड कर दमयन्ती के साथ महल से बाहर निकल गए। राजा का सब कुछ बर्बाद हो चुका था। इधर राजा पुष्कर ने अपने नगर में घोषणा कर दी थी कि ’जो कोई राजा नल या उनकी पत्नी दमयन्ती की किसी भी प्रकार मदद करेगा तो उसे फांसी की सजा दे दी जाएगी।‘ इसलिए राजा नल की चाह कर भी उनकी प्रजा ने कोई मदद नहीं की। तीन दिनों तक अपने नगर में भूखे-प्यासे भटकने के बाद वे दमयन्ती के साथ अपने मित्र के पास पहुंचे विपदा में आये हुए देख नल के मित्र ने उसकी अच्छी आवभगत की। जिसका समय उलटा हो जाता है उसका भाग्य भी उलटा हो जाता है। रात्रि के समय नल देखता है कि काष्ठ का बना मयूर वहां रखा उसके मित्र का नौलखा हार निगल रहा है और धीरे धीरे वह सम्पूर्ण हार को निगल जाता है। हार चौरी का आरोप नल के ऊपर लग जाता है।
वहां से वह अपनी बहिन के पास जाता है, दीन हीन विपदा में पडे हुए भाई को आते हुए देख कर वह लज्जित होती है और महलों के बजाय वह बगीचे में राजा नल को ठहराती है। भोजन के लिए जो पात्र भेजे जाते हैं वह नाली में गायब हो जाते हैं। इसका भी आरोप नल के ऊपर लगता है। जिसके ऊपर विपदा आती है उसके साथ भाग्य भी उलटा हो जाता है।
वहां से राजा नल दमयन्ती के साथ वन में चल जाता है।
एक दिन राजा नल ने कुछ खूबसूरत सुनहरे पंखों वाली पंछियों का एक झुंड देखा। उन्हें लगा कि वे सभी सोने के पंखों वाली चिडयां हैं जिन्हें पकड कर और उनके पंखों को बेच कर धन कमाया जा सकता हैं। लेकिन बिना जाल के पकडना संभव नहीं था।लेकिन लोभ में राजा ने फौरन अपने वस्त्रों को शरीर से उतारा और उसका जाल बना कर पंछियों की तरफ फेंका। वे उनको पकड पाते इसके पहले ही वे जाल के साथ आसमान में उड गई। राजा नग्न अवस्था में रह गए। उन्हें अपने ऊपर काफी शर्म आ रही थी। एक प्रतापी राजा की ऐसी दशा हो गयी थी। उनके पास तन ढकने के लिए वस्त्र नहीं थे। जब मनुष्य का समय बदलता है तो सब उलटा होने लग जाता है।
अब राजा नल के पास तन ढकने के लिए भी कोई वस्त्र न रह गया।

नल अपने अपेक्षा दमयन्ती के दुःख से अधिक व्याकुल थे। एक दिन दोनों जंगल में एक वृक्ष के नीचे एक ही वस्त्र से तन छिपाये पड़े थे। दमयन्ती को थकावट के कारण नींद आ गयी। राजा नल ने सोचा, दमयन्ती को मेरे कारण बड़ा दुःख सहन करना पड़ रहा है। यदि मैं इसे इसी अवस्था में यहीं छोड़कर चल दूँ तो यह किसी तरह अपने पिता के पास पहुँच जायगी।

यह विचार कर उन्होंने तलवार से उसकी आधी साड़ी को काट लिया और उसी से अपना तन ढककर तथा दमयन्ती को उसी अवस्था में छोड़ कर वे चल दिये। जब दमयन्ती की नींद टूटी तो बेचारी अपने को अकेला पाकर करुण विलाप करने लगी। भूख और प्यास से व्याकुल होकर वह अचानक अजगर के पास चली गयी और अजगर उसे निगलने लगा। दमयन्ती की चीख सुनकर एक व्याध ने उसे अजगर का ग्रास होने से बचाया। किन्तु व्याध स्वभाव से दुष्ट था। उसने दमयन्ती के सौन्दर्य पर मुग्ध होकर उसे अपनी काम-पिपासा का शिकार बनाना चाहा। दमयन्ती उसे शाप देते हुए बोली—‘यदि मैंने अपने पति राजा नल को छोड़कर किसी अन्य पुरुष का कभी चिन्तन न किया हो तो इस पापी व्याध के जीवन का अभी अन्त हो जाय। दमयन्ती की बात पूरी होते ही व्याध मृत्यु को प्राप्त हुआ।

दैवयोग से भटकते हुए दमयन्ती एक दिन चेदि नरेश सुबाहु के पास और उसके बाद अपने पिता के पास पहुँच गयी। अंततः दमयन्ती के सतीत्व के प्रभाव से एक दिन महाराज नल के पास आयी विपदा और दुःखों का भी अन्त हो जाता है। दोनों का पुनर्मिलन हो जाता है और राजा नल को उनका खोया हुआ राज्य भी वापस मिल जाता है।