नरेश भण्डारी's Album: Wall Photos

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शुभ रात्री

(((( निश्चल मन का प्रेम ))))
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एक गोपी आज कृष्ण की याद में बहुत छटपटा रही है.. नाम है मयूरी।
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शायद माता पिता ने मोर जैसा सुंदर रूप देखकर ही उसे ये नाम दिया होगा।
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सुबह चार बजे जागी तो देखा जोरों की वर्षा हो रही है। बादल बिल्कुल काले होकर नभ पर बिखरे पड़े हैं।
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श्याम वर्ण घन देखते ही गोपी की बिरह वेदना बढ़ने लगी। मन ही मन बोली हे श्याम घन!!
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तुम भी मेरे प्रियतम घनश्याम की तरह हो। जाओ उन्हें मेरा सन्देश दे आओ कि एक गोपी तुम्हारी याद में पल पल तड़प रही है।
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मेरे इन आंसुओं को अपने जल में मिलाकर श्याम पर बरसा देना। मेरे आंसुओं की तपन से शायद उस छलिया को मेरी पीड़ा का एहसास हो,
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सोचते सोचते गोपी ने मटकी उठाई और सासु माँ से पनघट जाकर जल भरने की आज्ञा मांगी।
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मुख पर घूँघट कमर और सर पर मटकी रख कृष्ण की याद में खोई चलती जा रही है.. पनघट की डगर।
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उधर कान्हा को भक्त की पीड़ा का एहसास हो गया था। झट काली कमली कांधे पर डाली और निकल पड़े वंशी बजाते।
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कुछ दूर वही गोपी घूँघट डाले चली आ रही है। नटखट ने रास्ता टोक लिया। और बोले भाभी ज़रा पानी पिला दो, बड़ी प्यास लगी है।
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गोपी घूँघट में थी, पहचान नही पाई कि जिसकी याद में तड़प रही है वही आया है।
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बोली, अरे ग्वाले! नेत्र क्या गिरवी धरा आये हो ? मटकी खाली है। पनघट जा रही हूँ अभी।
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मंद मंद मुस्कुराते कान्हा ने घूँघट पलट दिया। बोले, अरि भाभी! नेक अपना चांद सा मुखड़ा तो दिखाती जा!
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आँखे मिली। गोपी हतप्रभ! अरे ये यो श्याम हैं। ये मुझे भाभी बुला रहे हैं! कितने नटखट हैं!
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बोली, मैं भाभी नही, गोपी हूँ। तुम्हारी सखि हूँ।
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कान्हा ज़ोर से खिलखिलाकर हँस पड़े।
अरि गोपी! हम तो तुमको दिक करने को भाभी बोले!
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गोपी थोड़ा शरमा गई। बोली तो हटो राह से! जल भर लाने दो हमें।
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कृष्ण ने हंसते हंसते रास्ता दे दिया। गोपी जल भरकर वापस आई। एक मटका सर पर, दूसरा कमर पर।
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कृष्ण के ख्यालों में खोई सी चल रही है। पास कदम्ब के पेड़ पर घात लगाकर छलिया बैठा है।
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गोपी के निकट आते ही कंकड़ मारकर सर पर रखी मटकी फोड़ दी। घबराहट में दूसरी मटकी भी हाथ से छूट गई।
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कदम्ब के पत्तों में छिपे श्याम की शरारती खिलखिलाहट भूमण्डल में गूंजने लगी। सारी प्रकृति खिल उठी। सब ओर सावन दृष्टिगोचर होने लगा।
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गोपी ऊपर से रूठती, अंदर से प्रसन्न, आल्हादित! और हो भी क्यों न?
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सबके मन को हरने वाला सांवरा आज उस पर कृपा कर गया।
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गोपियों का माखन चोरी, मटकी फोड़ना और उन्हें परेशान करना ये सब गोपियों को बहुत भाता है। इसमें जो आनंद है, जगत में कहीं नही।
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छछिया भर छाछ के लालच में कमर मटका मटका कर नन्हा कृष्ण जब उन्हें नृत्य दिखाता है तो सब दीवानी हो उठती हैं।
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कोई गाल चूमती है, कोई हृदय से लगाकर रोती है। कोई आलिंगन में ले गोद में बिठा लेती है...
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और वचन देने को कहती है कि अगले जन्म में उसका बेटा बनकर जन्मे।।
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एक नन्हा नटखट और बीस पचीस गोपिया सबके अलग भाव।
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किसीको बेटा दिखता है, किसी को प्रियतम और किसी को सखा। परन्तु भगवान का ऐश्वर्यशाली रूप उन्हें नही पता।
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उनका अबोध, निश्छल मन तो उन्हें बृज का ग्वाल समझकर प्रेम करता है। ऐसा प्रेम जिसकी कोई पराकाष्ठा नही।
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श्याम को भी कोई परेशानी नही, खूब माखन लिपटवाते हैं मुख पर। कपोल चूम चूम कर लाल कर देती हैं गोपियाँ।
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जिससे नन्हे का सांवला रूप और भी मोहक लगने लगता है।
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अहा!! हे गोपियों आपके चरणों मे प्रणाम। जय हो आपके भावों की। जय हो आपके प्रेम को।
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((((((( जय जय श्री राधे )))))))
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