नरेश भण्डारी's Album: Wall Photos

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(((( मन का चिंतन कैसा हो ))))
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सुशील नाम के एक ब्राह्मण थे। उनके दो पुत्र थे। बड़े का नाम था सुवृत्त और छोटे का वृत्त।
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दोनों युवा थे। दोनों गुणसंपन्न तथा कई विद्याओं में विशारद थे। घूमते - घामते दोनों एक दिन प्रयाग पहुंचे।
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उस दिन श्रीकृष्णजन्माष्टमी थी। इसलिए श्रीबेणीमाधव जी के मंदिर में महान उत्सव था। महोत्सव देखने के लिए वे दोनों भी निकले।
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वे लोग सड़क पर निकले ही थे कि बड़े जोर की वर्षा आ गयी, इसलिए दोनों भाई मार्ग भूल गये। किसी निश्चित स्थान पर उनका पहुंचना कठिन था।
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अतएव एक तो वेश्या के घर में चला गया, दूसरा भूलता - भटकता माधव जी के मंदिर में जा पहुंचा।
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सुवृत्त चाहता था कि वृत्त भी उसके साथ वेश्या के यहां ही रह जाएं, पर वृत्त ने इसे स्वीकार नहीं किया।
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वह माधव जी के मंदिर में पहुंचा भी, पर वहां पहुंचने पर उसके संस्कार बदले और वह लगा पछताने। वह मंदिर में रहते हुए बी सुवत्त और वेश्या के ध्यान में डूब गया।
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वहां भगवान की पूजा हो रही थी। वृत्त उसे सामने से ही खड़ा देख रहा था।
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पर वह वेश्या के ध्यान में ऐसा तल्लीन हो गया कि वहां की पूजा, कथा, नमस्कार, स्तुति, पुष्पांजलि, गीत - नृत्यादि को देखते - सुनते हुए भी न देख रहा था और न सुन रहा था।
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वह तो बिलकुल चित्र के समान वहां निर्जीव सा खड़ा था।
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इधर वेश्यालय में गये सुवृत्त की दशा विचित्र थी। वह पश्चात्ताप की अग्नि में जल रहा था।
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वह सोचने लगा - ‘अरे ! आज भैया वृत्त के हजारों जन्मों के पुण्य उदय हुए जो वह जन्माष्टमी की रात्रि में प्रयाग में भगवान माधव का दर्शन कर रहा है।
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ओह ! इस समय वह प्रभु को अर्घ्य दे रहा होगा। अब वह पूजा - आरती का दर्शन कर रहा होगा। अब वह नाम एवं कथा - कीर्तनादि सुन रहा होगा।
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अब तो नमस्कार कर रहा होगा। सचमुच आज उसके नेत्र, कान, सिर, जिह्वा तथा अन्य सभी अंग सफल हो गये।
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मुझे तो बार - बार धिक्कार है, जो मैं इस पापमंदिर वेश्या के घर में आ पड़ा। मेरे नेत्र मोर के पंख के समान हैं, जो आज भगवद् दर्शन न कर पाये।
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हाय ! आज संत समागम के बिना मुझे यहां एक क्षण युग से बड़ा मालूम होने लगा है।
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अरे ! देखो तो मुझ दुरात्मा के आज कितने जन्मों के पाप उदित हुए कि प्रयाग - जैसी मोक्षपुरी में आकर भी मैं घोर दुष्ट - संगम मे फंस गया।
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इस तरह सोचते हुए दोनों की रात बीत गयी। प्रात:काल उठकर वे दोनों परस्पर मिलने चले।
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वे अभी सामने आएं ही थे कि वज्रपात हुआ और दोनों की तत्क्षण मृत्यु हो गयी ।
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तत्काल वहां तीन यमदूत और दो भगवान विष्णु के दूत आ उपस्थित हुए।
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यमदूतों ने तो वृत्त को पकड़ा और विष्णु दूतों ने सुवृत्त को साथ लिया।
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ज्यों ही वे लोग चलने के लिए तैयार हुए त्यों ही सुवृत्त घबराया सा बोल उठा, ‘अरे ! आप लोग यह कैसा अन्याय कर रहे हैं।
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कल के पूर्व तो हम दोनों समान थे। पर आज की रात मैं वेश्यालय में रहा हूं और वह वृत्त मेरा छोटा भाई माधव जी के मंदिर में रहकर परम पुज्य अर्जन कर चुका है।
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अतएव भगवान के परधाम में वहीं जाने का अधिकारी हो सकता है।
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अब भगवान के दोनों पार्षद ठहाका मारकर हंस पड़े। वे बोले, हम लोग भूल या अन्याय नहीं करते।
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देखो, धर्म का रहस्य बड़ा सूक्ष्म तथा विचित्र है। सभी धर्म कर्मों में मन:शुद्धि ही मूल कारण है। मन से भी किया गया पाप दु:खद होता है और मन से भी चिंतित धर्म सुखद होता है।
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आज तुम रातभर शुभचिंतन में लगे रहे हो, अतएव तुम्हें भगवद्धाम की प्राप्ति हुई। इसके विपरित वह आज की सारी रात अशुभ - चिंतन में ही रहा है, अतएव वह नरक जा रहा है।
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इसलिए सदा धर्म का ही चिंतन और मन लगाकर धर्मानुष्ठान करना चाहिए।
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वस्तुत: जहां मन है वहीं मनुषिय है। मन वेश्यालय में हो तो मंदिर में रहकर भी मनुष्य वेश्यालय में हैं और मन भगवान में है तो चाहे कहीं भी हो, भगवान में ही है।
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सुवृत्त ने कहा, पर जो हो, इस भाई के बिना मेरी भगवद्धाम में जाने की इच्छा नहीं होती। अत: आप लोग कृपा करके इसे भी यमपाश से मुक्त कर दें।
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विष्णुदूत बोले, सुवृत्त ! यदि तुम्हें उस पर दया है तो तुम अपने गतजन्म के मानसिक माघस्नान का संकल्पित जो पुण्य बच रहा है, उसे वृत्त को दे दो तो यह भी तुम्हारे साथ ही विष्णु लोक को चल सकेगा।
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सुवृत्त ने तत्काल वैसा ही किया और फलत: वृत्त भी अपने भाई के साथ ही हरिधाम को चला गया।
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((((((( जय जय श्री राधे )))))))
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