नरेश भण्डारी's Album: Wall Photos

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शुभ रात्री
(((( सत्संग का लाभ ))))
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एक बहुत चालाक चोर था. वह चोरियाँ करता लेकिन कभी पकड़ा न जाता.
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राजा के सैनिकों के लिए उसे पकड़ना एक चुनौती हो गयी थी।
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चोर के पिता ने मरते समय उसे सीख दी थी कि कभी महात्माओं के प्रवचन न सुनना.
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कभी आस-पास से गुज़रना पड़ जाए तब कानों में उंगली रख लेना.
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चोर एक बार कहीं जा रहा था, उसने देखा एक संत प्रवचन कर रहे थे. प्रवचन सुनाई न दे इसलिए चोर ने कानों में उँगली रख ली.
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उसी समय चोर के पैर में एक काँटा चुभ गया. चोर ने कान से उँगली निकाल कर अपने पैर का काँटा निकाला.
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इसी बीच उसे सुनाई पड़ गया, संत कह रहे थे..
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देवताओं के शरीर की छाया नहीं पड़ती और उनके पैर भी जमीन से चार अंगुल ऊपर रहते हैं.
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संयोग से कुछ दिन बाद ही वह चोरी करते हुए पकड़ा गया. उस से बहुत पूछा गया..
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..क्या तुम्ही वह चोर हो जो आज तक पकड़ा न जा सका है. लेकिन उसने अपना अता-पता नहीं बताया.
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राजा के सैनिकों को एक तरकीब सूझी. उन्होंने उसे बेहोशी की दवा पिला कर मूर्छित कर दिया.
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जब चोर को कुछ होश आया तब वह स्वार्गिक वातावरण में था. सुन्दर उद्दयान में अप्सराएं नाच-गा रहीं थीं.
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चारों ओर दिव्य प्रकाश था और मणि जड़ित स्वर्ण मण्डप बने हुए थे.
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एक अप्सरा ने कहा, अब आप स्वर्ग में हैं. कृपया बताएँ मृत्यु लोक में आप किस नाम से जाने जाते थे ?
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चोर ने देखा कि सबकी छाया धरती पर पड़ रही थी और उनके पैर भी जमीन पर थे. उसे संत की कही बात याद आ गयी.
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चोर ने युवती से कहा, मैं जान गया हूँ, न यह स्वर्ग है और न आप अप्सरा.
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मुझे राजा के पास ले चलिए. मैं अपना अपराध स्वीकार करना चाहता हूँ. “
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राजा के सम्मुख पहुँच कर चोर ने कहा, महाराज, मैं ही वह चोर हूँ जिसे आपके सैनिक न ढूँढ पा रहे थे.
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मुझे क्षण भर के सत्संग से बहुत लाभ हुआ है. मै भविष्य में कभी भी चोरी न करने का प्रण लेता हूँ.
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चाहें तो प्राण दंड दें या प्रायश्चित करने का एक अवसर… मुझ से बहुत पाप हुए हैं.
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राजा ने चोर के हृदय परिवर्तन को देखते हुए उसे मात्र कठोर श्रम की सजा दी.
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पल भर का सत्संग भी लाभकारी है. सत्संग जीवन को सार्थकता की ओर ले जाता है.
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((((((( जय जय श्री राधे )))))))
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