नरेश भण्डारी's Album: Wall Photos

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शुभ रात्री

(((( लक्ष्मी जी की कृपा ))))
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एक सेठ नदी पर आत्महत्या करने जा रहा था। संयोग से एक संत भी वहाँ थे।
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संत ने उसे रोक कर, कारण पूछा, तो सेठ ने बताया कि उसे व्यापार में बड़ी हानि हो गई है।
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संत ने मुस्कुराते हुए कहा- बस इतनी सी बात है? चलो मेरे साथ, मैं अपने तपोबल से लक्ष्मी जी को तुम्हारे सामने बुला दूंगा। फिर उनसे जो चाहे माँग लेना।
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सेठ उनके साथ चल पड़ा। कुटिया में पहुँच कर, संत ने लक्ष्मी जी को साक्षात प्रकट कर दिया।
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वे इतनी सुंदर, इतनी सुंदर थीं कि सेठ अवाक रह गया और धन माँगना भूल गया।
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देखते देखते सेठ की दृष्टि उनके चरणों पर पड़ी। उनके चरण मैल से सने थे।
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सेठ ने हैरानी से पूछा- माँ! आपके चरणों में यह मैल कैसी?
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माँ- पुत्र! जो लोग भगवान को नहीं चाहते, मुझे ही चाहते हैं, वे पापी मेरे चरणों में अपना पाप से भरा माथा रगड़ते हैं।
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उनके माथे की मैल मेरे चरणों पर चढ़ जाती है।
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ऐसा कहकर लक्ष्मी जी अंतर्ध्यान हो गईं।
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अब सेठ धन न माँगने की अपनी भूल पर पछताया, और संत चरणों में गिर कर, एकबार फिर उन्हें बुलाने का आग्रह करने लगा।
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संत ने लक्ष्मी जी को पुनः बुला दिया। इस बार लक्ष्मी जी के चरण तो चमक रहे थे, पर माथे पर धूल लगी थी।
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पुनः अवाक होकर सेठ धन माँगना भूल कर पूछने लगा- माँ! आपके माथे पर मैल कैसे लग गई?
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लक्ष्मी ने कहा- पुत्र! यह मैल नहीं है, यह तो प्रसाद है।
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जो लोग भगवान को ही चाहते हैं, उनसे मुझे नहीं चाहते, उन भक्तों के चरणों में मैं अपना माथा रगड़ती हूँ।
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उनके चरणों की धूल से मेरा माथा पवित्र हो जाता है।
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लक्ष्मी जी ऐसा कहकर पुनः अंतर्ध्यान हो गईं। सेठ रोते हुए, संत चरणों में गिर गया।
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संत ने मुस्कुराते हुए कहा- रोओ मत। मैं उन्हें फिर से बुला देता हूँ।
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सेठ ने रोते रोते कहा- नहीं स्वामी जी, वह बात नहीं है। आपने मुझ पर बड़ी कृपा की। मुझे जीवन का सबसे बड़ा पाठ मिल गया। अब मैं धन नहीं चाहता।
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अब तो मैं अपने बचे हुए जीवन में भगवान का ही भजन करूंगा। जो हरि को सुमिरते हैं, लक्ष्मी जी की कृपा उन्हें स्वत: प्राप्त हो जाती है।
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((((((( जय जय श्री राधे )))))))
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