"मैं जब पैरा स्पेशल फोर्स की ट्रेनिंग में था, तब हम अफसरों को अजीबोगरीब हालातों में डाला जाता। शरीर से तो हर अफसर दुरुस्त होता ही है, हमें मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए हर समय मानसिक रूप से तोड़ने की कोशिश की जाती।
"कभी सड़े, गिजगिजाते नाले में डुबकी लगवा दी जाती तो कभी बिलकुल सड़ चुके मरे जानवर की बोटियाँ कटवाई जाती। एक बार तो रात के दो बजे मुझे सोते से उठाया गया और कॉपी-पेन पकड़ा कर कहा गया कि हजार शब्दों का एक निबंध लिखो कि बेनजीर भुट्टो की तबियत खराब होने से पश्चिम बंगाल का मानसून कैसे प्रभावित होता है। शर्त थी कि इस निबंध से सबको सहमत होना चाहिए।
"स्पेशल फोर्स में आ तो गया, कश्मीर में तैनात भी हो गया, पर अभी अपने अफसरों से अपनापन नहीं मिला था। मुझे जो भी ऑपेरशन दिया जाता, उसे मैं हर बार सफलतापूर्वक अंजाम दे देता। फिर भी मेरे अफसर मुझसे खिंचे-खिंचे से लगते।
"मुझे एक बार एक ऐसे मिशन पर भेजा गया, जिसका होना नामुमकिन था। मैं जब फील्ड हेडक्वार्टर वापस आया तो मुझसे बहुत बेरुखी का व्यवहार किया गया। मेरे सीनियर मुझ पर चिल्लाते हुए बोले कि तुम स्पेशल फोर्स के लायक नहीं हो।
"अगले दिन मेरे टीम कमांडर ने मुझे पिछले सीनियर से भी अधिक फटकार लगाई। मैं अभी ठीक से गुस्सा भी नहीं हो पाया था कि उन्होंने मुझे एक पेपर थमा दिया। मुझे स्पेशल फोर्स से निकाल दिया गया था, और महार रेजिमेंट की सामान्य इन्फैंट्री में डाल दिया गया था।
"फौजी हूँ, शायद इसलिए आँसुओं को रोक लिया। स्पेशल फोर्स मेरा सपना था। इसके लिए मैंने हाड़तोड़ मेहनत की थी। और मुझे अचानक ही निकाल दिया गया।
"मैं अपने कमरे में बुत बना बैठा था। कुछ देर में मेस से एक वेटर आया और बोला कि सीओ साहब अंतिम बार मेरी शक्ल देखना चाहते हैं, उन्होंने मेस में आने का ऑर्डर दिया था। ऑर्डर था, तो फॉलो करना ही था। मेस में सीओ साहब निराशा से मेरी ओर देख रहे थे। मैंने उन्हें सैल्यूट किया और उन्होंने मुझे पचास डिप्स मारने का हुक्म दे दिया। यह क्या बात हुई? पर डायरेक्ट ऑर्डर, मैं तुरन्त डिप्स मारने लगा।
"जब पचास की गिनती पूरी हुई, और मैं उठा तो सीओ सर के हाथ में बिलकुल नई टोपी, मैरून बेरेट थी, और वे मुस्कुरा रहे थे।
"मुझे कुछ पल लगे समझने में, कि मैं अब असल मायनों में पैरा स्पेशल फोर्स का हिस्सा बन गया हूँ। अब तक जो हो रहा था, वह बस नाटक था। "