माल ढुलाई के साधन जैसे कि ट्रेन या ट्रक उन जगहों पर तो नहीं जा सकते जहां रेल लाइन या सड़क हो ही न। तो ऐसी जगहों पर ढुलाई का एकमात्र साधन खच्चर होते हैं।
भारत देश की दुर्गम पहाड़ी सीमाओं पर हथियार, भोजन, पानी इत्यादि सामानों की ढुलाई में खच्चरों की सेवा ली जाती है। सेना में सर्विस देने वाले प्रत्येक जीव को सिर्फ जानवर नहीं माना जाता। उन्हें भी वही सम्मान मिलता है जो किसी दोपाये जानवर, अर्थात मनुष्य (सैनिक) को मिलता है।
1971 के भारत-पाक युद्ध में एक एनिमल ट्रांसपोर्ट कॉन्वॉय, जो माल ढुलाई कर रहा था, पर अचानक ही पाकिस्तानियों ने हमला कर दिया। खच्चरों के ड्राइवरों ने जल्दी से कवर लिया और कुछ ही देर में भारतीय सैनिकों ने जवाबी फायरिंग की। कुछ समय बाद जब शांति हुई तो पता चला कि तीन खच्चर मिसिंग है।
यह सामान्य बात थी। भारत हो या पाकिस्तान, जब भी जिसे मौका मिलता, वो दुश्मन के खच्चरों को किडनैप कर लेता। तीन खच्चर अब पाकिस्तानी आर्मी की सेवा में खपा लिए गए।
लेकिन अगले दिन भारतीय फौजियों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उन तीन में से एक खच्चर ने अगले ही दिन अपनी यूनिट में रिपोर्ट किया। वह अकेले खाली हाथ (खाली पीठ) नहीं आई थी, बल्कि एक पाकिस्तानी एमएमजी और दो बक्से भर कर गोलियां भी लेती आई थी।
उस खच्चर की यह वीरता देख उसे वीर चक्र से नवाजा गया। वीर चक्र मिलने पर फिर कभी उसे माल ढुलाई के काम में नहीं लगाया गया। अपनी मृत्यु तक, अगले सात साल तक वह मस्त खाना खाती, अपनी यूनिट में घूमती-टहलती रहती।
आर्मी सर्विस कोर, बैंगलोर में उस खच्चर की फ़ोटो और उसे मिला वीर चक्र आज भी ससम्मान रखा गया है।