धूप सेकती सड़के
कहाॅ जाती है,
मालूम नही ,
जेब मे हाथे रख चल पडी,
सवाले मन को उलझाते गई ,
आखिरकार एक मोड पर रूक गई ,
मै इतना दूर क्यो आई ,
बेफिक्र रिश्तो ने समझाया ,
जबरदस्ती हाथ पकड़ी हो,
शोर के बीच तन्हाई पुकारी ,
आस्तित्व की बहुत बुराई हूई ।
लौट चलो ,यहा बहुत भीड़ है,
जज्बातो की चुडिया तोड़ दो,,
खनकती हूई जंजीरे पायल नही है
सिन्दूर की रंग खूबसूरत है,
पर समझौते की मांग मे सजी है,
रंगीन साडिया है,
बेरंग एहसास के सितारे है,
धूप -छाव मे चमकते है,
पर रात को खुद पे रोते है,
लम्हे गुजर जाते है,
दिन सफर कर साल हो जाते है।
फिर तूम क्यो खडी हो,
कोई नही तेरा,
तलाश करती रहोगी ,
तो समय की बेइज्जती होगी ।
अकेले ही चलो ,
बहुत उपर उड जाओगी ,
पंझियो के साथ बादलो से टकराओगी ,
लिख दो इतिहास पर,
तुम नारी हो ,कोई मजबूरी नही।