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. ॐ श्री परमात्मने नमः

श्री गणेशाय नम:

राधे कृष्ण

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌॥
. ( श्रीमद्भागवत गीता अ० ४-७ )

हिन्दी अनुवाद -
हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ |

व्याख्या-
हे अर्जुन! जब जब परमधर्म परमात्मा के लिए हृदय ग्लानि से भर जाता है, जब अधर्म की वृद्धि से भाविक पार पाते नही देखता, तब मै आत्मा को रचने लगता हूँ | ऐसी ही ग्लानि मनु को हुई थी-

हृदयँ बहुत दुख लाग, जनम गयउ हरिभगति बिनु ||
( रामचरितमानस, १/१४२ )

जब आपका हृदय अनुराग से पूरित हो जाए, भर जाए, उस शाश्वत-धर्म के लिए 'गदगद गिरा नयन बह नीरा |' ( रामचरितमानस ३/१५/११ ) की स्थिति न आ जाए, जब प्रयत्न करके भी अनुरागी अधर्म का पार नहीं पाता-- ऐसी स्थिति में मै अपने स्वरूप को रचता हूँ | अर्थात भगवान का आविर्भाव मात्र अनुरागी के लिये ही है- 'सो केवल भगवान हित लागी |' ( रामचरितमानस, १/१२/५ ) यह अवतार किसी भाग्यवान साधक के अन्तराल मे होता है | आप प्रकट होकर करते क्या हैं? अगले सत्र में मित्रों |

हरि ॐ तत्सत् हरि:।

ॐ गुं गुरुवे नम:

राधे राधे राधे, बरसाने वाली राधे, तैरी सदा हि जय हो माते |

शुभ हो दिन रात सभी के।