(भरिया)
भर या राजभर जाति की वंशावली का विराट वटवृक्ष भारतीय भूभाग पर आज भी विद्यमान है मध्य भारत में बसने वाली भरिया जाती मध्य भारत से लेकर असम तक के बड़े भूभाग पर भरिया राजभर जाति के लोग विभिन्न जिलों में विभिन्न नामों उप नामों से जाने जाते हैं। मसौद प्रथम के साम्राज्य पंजाब का सूबेदार अहमद नियलतिगीन जब महोबा की तरफ रवाना हुआ तो उस समय गंगयदेव उस भू-भाग का स्वामी था गंगेयदेव के पश्चात उसका पुत्र कर्ण मिर्जापुर का शासक बना जिसने कर्णावती या कांतित परगना का निर्माण करवाया।
इस राजा कर्ण के विषय में गहन अध्ययन करने के उपरांत जो निष्कर्ष निकलता है वह इसे भर जाति का ही शासक सिद्ध करता है राजपूत युग में चार कर्ण शाशको का उल्लेख मिलता है गहरवाल वंश का कर्ण इस कर्ण के विषय में अली बैहकी ने इसे भर शासक ही सिद्ध किया है जो महोबा का शासक बताया गया है। दूसरा कर्ण त्रिपुरी में कलचुरी वंश का शासक था। तीसरा कर्ण लक्ष्मी कर्ण इस कर्ण के पुत्र का नाम यशः कर्ण था। चौथा कर्ण अहिलवाड़ा (गुजरात) के चालुक्य या सोलंकी वंश से संबंधित था। पर मुसलमान इतिहासकारों ने इसे राय कर्ण कहा है और बघेल का शासक सिद्ध किया है। महोबा का शासक कर्ण ही भर शासक था। महोबा पर बार बार आक्रमण होते रहे पंजाब का सूबेदार अहमद नियलतिगीन महोबा पर आक्रमण किया और उसे मुंह की खानी पड़ी। भोज परमार ने भी कर्ण साम्राज्य पर आक्रमण किया भोज के आक्रमण से राजा कर्ण महोबा से पलायन कर गया। सपरिवार कुछ सैनिकों के साथ वह दहाल के तेवार क्षेत्र में आकर बस गया उसका पलायन काल 1080 ई, था।
भरिया शब्द इसी कारण भर का तिरस्कृत रूप बन गया लगभग साढे 800 वर्षो में भर जाति की जनसंख्या केवल जबलपुर में 25000 हो गई छिंदवाड़ा, बिलासपुर, मंडला, तथा बालाघाट में इस जाति के लोग कालांतर में फैल गए इस भर या भरिया जाति की जनसंख्या जबलपुर छिंदवाड़ा, बिलासपुर, मंडला तथा बालाघाट में 63,743 थी। भर जाति के लोग (मध्यप्रदेश) में अपने अतीत को भूल चुके हैं कुछ लोग भक्तर सिवनी तथा सरगुजा में स्वयं को भर जाति से संबंधित बताते हैं पर उक्त चारों जिलों में भरिया नाम से ही जाने जाते हैं। इसी प्रकार भरिया तथा भर नाम से महाराष्ट्र में उक्त आदेश के अंतर्गत भर नाम के क्रम बंद किए गए हैं महाराष्ट्र में भूरिया तथा भर जाति के लोग चंद्रपुर बुलदाड़ा तथा यवतमाल में पाए जाते हैं जिन पर जाति या भरिया जाति के लोगों के पास भूमि अधिक मात्रा में है उन्हें भूमिया कहते हैं। महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश में भर या भरिया जाति की संगोत्री तथा विषमगोत्री जातियों के विषय में प्रचुर मात्रा में सामग्री उपलब्ध है भरिया जाति की महान भर जाति से उत्पत्ति जबलपुर की यह जाति संयुक्त प्रांत के भरोसे उत्पन्न हुई है। छिंदवाड़ा जिले के तामिया विकासखंड में चारों तरफ ऊंची ऊंची पहाड़ियों से घिरा हुआ 4 किलोमीटर वर्ग फल वाला एक गहरा भूभाग है सामान्य धरातल से यह भूभाग ढलान लेता हुआ 3 से 4 किलोमीटर नीचे स्थित है पुराणों में इसी क्षेत्र को "पाताललोक" कहा गया है बलीराजा अपना साम्राज्य छिन जाने के पश्चात निर्वासित यही रहने लगे इस स्थान का नाम नागालय भी कहा गया है पहाड़ियों से आच्छादित होने के कारण सूर्य की किरणें इस प्रदेश में नहीं पहुंच पाती। अधिकांशत अंधेरा रहता है यही नागवंशी भरिया जाति का उद्गम स्थान कहा जाता है ये भरिया जब इस भू-प्रदेश से बाहर निकले तो भर से भरिया कहे जाने लगे और सर्वत्र फैलते चले गए। यहां एक विशाल टीला स्थित है कहा जाता है कि यही प्राचीन नागवंशीओं का राज महल था इस टीले को पातालकोट कहा जाता है इस कोट की खुदाई करने पर भरो तथा भरियो की महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त हो सकती है वर्तमान समय में प्रदेश को जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है भविष्य मे यह भाग जब देश की मुख्यधारा से जुड़ जाएगा इतिहास का धुधला पन्ना भी साफ नजर आने लगेगा।