भर भरत भरताज भरवंश राजाओं का वीरता का परिचय कराना बड़ी ही जटिल है
सालार मसूद और सुहेलदेव सरताज की कथा फारसी भाषा के मिरात-ए-मसूदी में पाई जाती है।
यह मुगल सम्राट जहाँगीर (1605-1627) के शासनकाल के दौरान अब्द-उर-रहमान चिश्ती ने लिखी थी। पौराणिक कथा के अनुसार, सुहेलदेव श्रावस्ती के राजा के सबसे बड़े पुत्र थे।
पौराणिक कथाओं के विभिन्न संस्करणों में, उन्हें सकरदेव, सुहीरध्वज, सुहरीदिल,राय सुह्रिद देव, समेत विभिन्न नामों से जाना जाता है।[1]
महमूद ग़ज़नवी के भतीजे सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी ने 16 वर्ष की आयु में सिंधु नदी को पार कर भारत पर आक्रमण किया और मुल्तान, दिल्ली, मेरठ और अंत में सतरिख इत्यादि पर विजय प्राप्त की।
सतरिख में, उन्होंने अपने मुख्यालय की स्थापना की और स्थानीय राजाओं को हराने के लिए सेनाओं को भेज दिया। सैयद सैफ-उद-दीन और मियाँ राजब को बहराइच को भेज दिया गया था। बहराइच के स्थानीय राजा और अन्य पड़ोसी हिंदू राजाओं ने एक संघ का गठन किया लेकिन मसूद के पिता सैयद सालार साहू गाजी के नेतृत्व में सेना ने उन्हें हरा दिया। फिर भी उन्होंने उत्पात मचाना जारी रखा और इसलिए सन् 1033 में मसूद खुद बहराइच में उनकी प्रगति को जाँचने आया।
सुहेलदेव के आगमन तक, मसूद ने अपने दुश्मनों को हर बार हराया। अंत में सन् 1034 में सुहेलदेव की सेना ने मसूद की सेना को एक लड़ाई में हराया और मसूद की मौत हो गई।
मसूद को बहराइच में दफनाया गया था और सन् 1035 में वहाँ उसकी याद में एक दरगाह बनाई गई थी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का दावा है कि उस जगह पहले हिंदू संत और ऋषि बलार्क का एक आश्रम था और फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के द्वारा उसे दरगाह में बदल दिया गया।