भारशिव नरेश डालदेव का रक्तरंजित इतिहास :: एक स्मृति =डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव
by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव
इतिहास के अनुसार ग्यारहवी सदी में उत्तर भारत का लगभग पूरा क्षेत्र श्रावस्ती सम्राट सुहेलदेव राजभर के राज्य में था परन्तु बारहवी सदी आते आते मुसलमानों के आतंक से भरो की राज्य व्यवस्था काफी प्रभावित हुई । यहाँ तक कि हरदोई के भर भरताज राजा हरदेव को सवर्णों की मदद से मुसलमानों ने पराजित किया तथा जबरन भरो को मुसलमान बनाने का अभियान छेड़ दियाI I उन्हें जबरन धर्म परिवर्तनके लिए बाध्य किया गया I इसका बिरोध करने पर भरो और अन्य हिन्दू जातियों का खुलेयाम कत्ले आम किया गया और भरो को राजनैतिक, आर्थिक तथा धार्मिक यातनाओ का सामना करना पड़ा I मुसलमानों का यह धार्मिक दमन तेरहवी सदी तक चलता रहा I आत्म-रक्षा के लिये भर जाति का पलायन होने लगा था I उनकी राजसत्ता कमजोर होने लगी I
चौदहवीं सदी के अंतिम वर्षों में भार-शिव क्षत्रीय एक बार फिर संगठित हुए और उन्होंने अपनी शक्ति बढ़ायी I पंद्रहवी सदी आते-आते भर क्षत्रिय राजा डालदेव ने मुसलमानों के शर्की राजवंश विशेषकर जौनपुर के शासक इब्राहीमशाह शर्की (शा.का.1402-1440) के धार्मिक अत्याचारों के विरुद्ध रायबरेली के प्रख्यात बैस राजपूतो से सहायता प्राप्त कर जनपद में अपनी राजसत्ता हासिल कर ली। राजा डालदेव उस समय सभी भारशिव क्षत्रीय राजाओ के नेता बन चुके थे I I इन्होने डलमऊ को अपनी राजधानी बनाया और वही किला बनाकर रहने लगे I इनके छोटे भाई बालदेव रायबरेली के राजा बने तब रायबरेली का नाम भार-शिव राजाओ के आधार भरौली था जो बाद में काल के प्रभाव से धीरे-धीरे रायबरेली हुआ I समय बीतने के साथ साथ भरो ने महाराजा डालदेव के नेतृत्व में एक होकर मुसलमानों से लोहा लेने हेतु मंसूबे बाँधने लगे I
संयोग से एक दिन राजा दलदेव जंगल में शिकार खेलने गये थे I उस जंगल से होकर इब्राहीम शाह शर्की के एक मुलाजिम सैयद बाबा हाजी की पुत्री सलमा पालकी में बैठ कर कही जा रही थी I कही-कही यह भी उल्लेख मिलता है कि गंगा विहार के दौरान वह नाव में भटकती हुयी डलमऊ के किले तक आ गई थी I कथा जो भी हो पर उसका सामना डालदेव से अवश्य हुआ I संयोग से वह सुन्दर और जवान थी I उसेदेखकर डालदेव को वे स.......