वर्तमान भर व राजभर नामधारी जाति हिंदुस्तान की पावन भूमि में निवास करने वाली उन सभी नागवंशी की श्रेष्ठ संतान है जो आज से लगभग 2000 वर्ष पूर्व उत्तरी भारत वर्ष में विशाल शासन करते थे इस वंश के राजा बड़े प्रतापी ऐश्वर्य शाली और वीर हुए हैं जिन्होंने अपने बाहुबल और पराक्रम से देश पर आक्रमण करने वाली शक, कुषाण, यवन आदि विदेशी जातियों को मार भगाने में समर्थ हुए हैं यह लोग वर्तमान मथुरा इलाहाबाद अवध मिर्जापुर काशी वगैरह में छोटी-छोटी रियासतें स्थापित कर सदियों राज्य करते रहे हैं क्योंकि यह लोग पहले शैव संप्रदाय के अनुयाई थे अतएव शिव जीके परम उपासक होने के कारण ये लोग प्रारंभ में भारशिव नाम से विख्यात हुए तत्पश्चात यही राजभर और भर जाति के नाम से प्रसिद्ध हुए
ऐतिहासिक घटनाओं के आधार पर कुछ लोगों का विचार इस प्रकार है कि जिस समय शक, हुण आदि विदेशी जातियों का आक्रमण उत्तर भारत में होना शुरू हुआ इन वीर जातियों ने उन मले मलक्ष्यों को देश की सीमा से बाहर निकाल देने का भार अपने सर पर लिया उन्हें सफलतापूर्वक कार्यान्वित कर संसार के समक्ष अपनी वीरता का पूर्ण परिचय दिया अतः इसी भार को ग्रहण करने के कारण यह राज वंशीय वीर राजभर कहलाए जाने लगे जो इस नाम से अब तक प्रसिद्ध हैं चाहे जो कुछ भी हो परंतु यह निर्विवाद सिद्ध है कि अवश्य मेव भर शब्द भार शब्द का अपभ्रंश है और इन्हीं बातों के आधार पर इस जाति का प्रादुर्भाव भी हुआ है .
[21/ इस जाति के संबंध में एकमात्र प्रसिद्ध सरस्वती नामक हिंदी मासिक पत्रिका के सुयोग्य संपादक श्रद्धेय श्री पंडित देवीशंकर शुक्ल जीने ग्राम संदेश में लिखित उल्लेख प्रकाशित किया है कि भर या भार उन भारशिव क्षत्रियों के वंशधर हैं जिन्होंने विंध्य क्षेत्र कांति पुरी में अपनी राजधानी स्थापित करके भारत से शकों को मार भगाने का महान उपक्रम किया था बाद में इनका पराभव हो जाने पर कालांतर में इनके नाम का शिव शब्द उड़ गया होगा और वह भार कहलाने लग गए होंगे गहरवार क्षत्रियों के ध्वंस हो जाने पर भरो ने आगे आकर मुसलमान आक्रमणकारियों से डटकर लोहा लिया और उनका यह स्वतंत्रता का युद्ध लगातार 200 वर्षों तक होता रहा .अंत में रायबरेली जिले के सुदामन पुर के युद्ध में भरो के अंतिम सरदारो को जौनपुर के इब्राहिम शाह शर्की ने मार कर घरों का नाम शेष कर दिया सुदामनपुर के युद्ध के संबंध में मुसलमान इतिहास कारों ने लिखा है कि इसी युद्ध में इस्लाम के तलवार की प्यास बुझ गई ऐतिहासिक ग्रंथों के पढ़ने से प्रकट होता है कि गहरवार ओं के प्रभाव के पश्चात कन्नौज राज के अधिकांश भूभाग के भर लोग स्वामी बन बैठे कलिंजर, बहराइच, सुल्तानपुर, और रायबरेली उनकी शक्ति के प्रधान केंद्र थे सुल्तान अल्तमस के पुत्र अलाउद्दीन ने बहराइच के भरो का पराभव करने में डेढ़ लाख सैनिकों से हाथ धोया याद रखने वाली चीज यह है कि सुहेलदेव के युद्ध में भी डेढ़ लाख के आसपास मुस्लिम सैनिक मारे गए थे बलबन ने कलिंजर के भरो का पराभव किया .
[21/ Bharsiv: अलाउद्दीन खिलजी ने सुल्तानपुर के भरो की शक्ति तोड़ दी रायबरेली के भरो की शक्ति इब्राहिम शर्की जौनपुर द्वारा खत्म कर दी गई भर क्षत्रियों के इस पराभव गाथा मैं सबसे दुख का प्रकरण यह है कि जिस समय भर क्षत्रिय लोग मुसलमान आक्रमणकारियों से अपने देश की रक्षा के लिए यानी देश की स्वतंत्रता के लिए तलवार की झंकार कर रहे थे ठीक उसी समय क्षत्रियों के (अन्य प्रांतों से) साहसी दलों ने पीछे से आक्रमण कर दिया था इस प्रकार से यह लोग दो तरफ से युद्ध में घिर गए थे तथापि इनके लिए यह कम गौरव की बात नहीं है कि उन्होंने जो लगातार 200 वर्षों तक अपनी स्वतंत्रता और राष्ट्र धर्म संस्कृति की रक्षा के लिए बड़े धैर्य और साहस के साथ आक्रमणकारियों का सामना किया और अपने आप को न्योछावर कर दिया केवल उनका नाम शेष रह गया .
तथा गुलामी का जीवन व्यतीत करने को नहीं रह गए इस भूमि में कन्नौज राज के इन वीर भरो की वीर गाथा यद्यपि श्रृंखलाबद्ध रूप से उपलब्ध नहीं है तथापि उनके संबंध में जो प्राचीन सामग्री मिलती है वह उनका नाम अमिट बनाए रखेगी इतिहास में इस विषय में जो दंत कथाएं प्रचलित हैं और उनके नगरों के ध्वंसावशेष (खंडहर) पाए जाते हैं उनसे प्रकट होता है कि भर लोग बड़े दुर्गों में रहते थे तथा चंद्रिका देवी के उपासक थे उनके चंद्रिका देवी के मंदिर आज भी उत्तर प्रदेश के भिन्न-भिन्न भागों में पाए जाते हैं गोंडा बहराइच फैजाबाद रायबरेली सुल्तानपुर जौनपुर प्रतापगढ़ बनारस मिर्जापुर कानपुर इलाहाबाद और वादा आदि जिलों में पाए जाते हैं कन्नौज राज्य के इन वीरों का इतिहास आज इन डी हो में निहित पड़ा है.
और यहां तक की अंगणित डीह पाए जाते हैं दुख की बात है कि इस देश के विद्वान इतिहासकार इस वीर जाति के संबंध में किसी प्रकार से खोज विनोद नहीं करना चाहते हैं यहां तक की ध्यान नहीं देना चाहते परंतु यह निर्विवाद है कि उनके इतिहास की अमर कहानी मिट नहीं सकती और न उनके समय के ताम्रपत्र के उल्लेख के बिना भारत का इतिहास पूर्ण हो सकेगा. हर हर महादेव जय हो भारशिव भर क्षत्रिय.