*छोड़ो अभिमान पाओ सम्मान* *(प्रमाण सागर महाराज जी के प्रवचनों से )*
एक पिता अपने बेटे के साथ माउंट आबू गया। दोनों सनसेट पॉइन्ट पर थे। सूरज डूबने ही वाला था। पिता बड़ा अभिमानी था। उसने अपने चार साल के बेटे से कहा- “बेटा! मेरी ताकत देखना चाहता है?” बेटा बोला- “दिखाइये न पापा।” तो देख सामने सूरज है न, अभी मैं उससे कहूँगा डूब जाओ तो सूरज डूब जाएगा। बेटे को बड़ा अच्छा लगा कि मेरे पिता जी इतने शक्ति सम्पन्न हैं कि सूरज को भी डुबा सकते हैं। वह बोला-”पापा करके बताओ।” सूरज डूबने वाला था, पिता ने दूर से कहा “GO DOWN”' और इतना कहते ही सूरज डूब गया। पिता ने बड़े अभिमान से अकड़ते हुए कहा-” बेटा देख ली मेरी ताकत!” बेटे ने कहा “ हाँ पापा ! बहुत अच्छा, Please do once again! Please try once again! अब पिता क्या करे? सब धरा रह गया। इसलिए कभी भी अभिमान मत करो और सम्मान में कभी चूक मत करो!
मैं तो बहुत छोटा हूँ और दूसरे लोग भी हैं, मुझे सबको देखना है और सबके साथ चलना है। ये परिणति अपने अंदर होनी चाहिए। यदि आप दूसरों को श्रेय बाँटोगे तो लोग आपके कायल बनेंगे और प्रशंसक बनेंगे और यदि सारा श्रेय खुद लूटने की कोशिश करोगे तो लोग कहेंगे बड़ा विचित्र आदमी है, करते हम हैं और माला खुद पहनता हैं।
*सम्मान करोगे,सम्मानित होगे। सम्मान चाहोगे तो अपमानित होना पड़ेगा*। यह सूत्र अपने जीवन में ले लो- *श्रेय बाँटोगे, तो तुम्हें भी श्रेय मिलेगा* और सारा श्रेय खुद लेने का प्रयास करोगे तो सब चला जाएगा।’ हमेशा यही भाव रखो कि अगर कोई काम अच्छे से हो रहा है तो उसकी सफलता मेरी वजह से नही अपितु उन बाकी सारे लोगो के कारण है, जो उस कार्य से जुड़े हैं ! जब हम दूसरों का सम्मान करेंगे तब अपने आप ही हमे भी सम्मान प्राप्त होगा