जय माँ
साधक अवश्य पढ़ें और शेयर करें
गुरु सत्ता एक ही है इस बात को ना मानकर जो साधक दूसरो के गुरू का अपमान करे और अपने गुरू को श्रेष्ठ बताऐ वो कभी भी गुरू तत्व को समझ ही नही सकता क्योकि गुरू कमजोर हो सकता है गुरू पद नही क्योकि जब हम किसी व्यक्ति को गुरू मान लेते है तो एक गुरू रूपी शक्ति से जोड़ जाते है और अपने आप को समर्पित कर देते है और वही से हमारा एक नया जीवन शुरू होता है एक आनन्द रूपी सत्ता जहा ना मोह है ना माया ना अच्छाई ना बुराई ना सत्य ना असत्य ना सम्मान ना अपमान इन सब के बीच कि एक अवस्था सम भाव मै रहना एक आनन्द रूपी भाव जहा हम अपने आप मै ही आनन्दित रहते है इसलिऐ कभी भी किसी के भी गुरु हो उन का अपमान मत करो अगर आप को लगे कोई गलत रास्ते पे जा रहा है तो उस का सही मार्ग दर्शन करे ना कि अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने मै उस के गुरू के बुराई करने लग जाऐ क्योकि दुनिया मै हर वयक्ति अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने मै ही लगा हुआ है फिर साधक मै और एक आम इंसान मै क्या फर्क रह जाऐगा भाव तो एक ही है दोनो का हर किसी मै बुराई निकालना याद रहे अगर आप सब के गुरू आप मै बुराई देखते तो आप कभी शिष्य नही बन पाते।
जगदम्ब भवानी