बड़े से बड़े जानवर हाथी ,घोड़े के मृत शरीर को देख कर भय नहीं लगता । छोटों का तो कहना ही क्या ! बकरे ,मुर्गे का तो हम मांस खाते हैं , शिकायत भी करते हैं , " अरे यार मसाला थोड़ा कम था"
पर इंसान के मृत शरीर से भय क्यों लगता है ? उसे देख कर कहीं मस्तिष्क में पीछे यही सोच उभरता है , ये तो मेरे जैसा था , मर गया , मेरा भी यही हश्र होगा । ये भूत बन जाएगा !!!
गधों ,घोड़ों के भूत क्यों नहीं होते ? सब दिमाग की उपज है ।
गाँव की बुढ़िया की सांस अगर फिर से लौट आयी तो ज़रूर बताएगी " बिटवा दो काले काले राक्षस मुझे ले जा रहे थे , आपस में बोले "हम तो ग़लत औरत को ले आये , हमको तो इसकी पड़ोसन को ले जाना था , और मुझे छोड़ दिया "। वही निकल कर आया जो वो ज़िंदगी भर सोचती रही है ।
अच्छा हम हिन्दुओं के यम दूत तो काले होते हैं , अंग्रेजों के तो गोरे होते होंगे या फिर वहां भी काले ही यह नौकरी करते हैं ।
जो हम सोचते हैं , वही अर्ध विक्षिप्त अवस्था में देखने भी लगते हैं ।
इस तरह के सोच से भयभीत होने के बजाय इसका सदुपयोग करना चाहिए , यह हमेशा दिमाग में रहे कि हम सभी मरण शील हैं ,कुकर्म करके नोंचने खसोटने से कुछ नहीं होगा , सब कुछ यही छुटेगा , दुःख किस बात का ,कुछ लाये थे जो ले जाना है