Kamaljeet Jaswal's Album: Wall Photos

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*** मनुस्मृति अध्याय 1(श्लोक 87-93) ***
परमात्मा ने संसार की रक्षा के लिए ब्राह्मणादि, चारों वर्णों के कार्य अलग अलग नियत किए हैं
पढ़ना, पढ़ाना, यज्ञ करना, यज्ञ कराना, दान लेना, दान देना ये छः कर्म ब्राह्मणों के हैं!
प्रजा की रक्षा करना, यज्ञ करना, दान देना, पढ़ना, इन्द्रियों के वश में ना फंसना ये क्षत्रियों के कर्म हैं!
पशुओं का पालन करना, यज्ञ करना, पढ़ना, दान देना, व्यापार करना, खेती करना, ब्याज लेना ये सब काम वैश्य के हैं!
परमात्मा ने शूद्रों के लिए एक ही काम बतलाया है ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य की भक्ति भाव से सेवा करना! (91)
पुरुष नाभि के ऊपर अति पुनीत माना गया है उसमें भी उसका मुख अति पवित्र है (92) (इसका अर्थ स्त्री पुरुष के बराबर पुनीत नहीं है ?)
परमात्मा के मुख तुल्य होने से, चारों वर्णों में बड़ा होने से, और वेद पढ़ाने से, ब्राह्मण सबका प्रभु है! (93)
लो मित्रों फिर कर कल्लो बात!
मनुस्मृति में ब्राह्मणों ने अपने को ब्रह्मा के मुख (सिर) तुल्य होने से सबका प्रभु बता दिया, चलो ब्राह्मण शायद ये नहीं जानते हैं कि मनुष्य के शरीर में सबसे गंदी जगह भी मुख (सिर) ही है जहाँ नाक, कान, आँख से शरीर अपनी गंदगी बाहर निकालता है बाकी बचती हैं दो जगह वहाँ से हिन्दू धर्म शास्त्र ने किसी का जन्म ही नहीं माना है इस आधार पर ब्राह्मण समाज सनातन धर्म का सबसे नीच समाज है!
परमात्मा ने अगर शूद्रों को भक्ति भाव से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य की सेवा करने को कहा है तो ब्राह्मणों को भी कोई महान कार्य नहीं सौंहै उन्हें भी सबसे नीच कार्य दान लेना अर्थात भिक्षा (भीख) मांगकर आजीविका चलाने को कहा है एक परजीवी की तरह समाज में जीवित रहना ब्राह्मणों की तथाकथित श्रेष्ठता पर प्रश्न चिन्ह लगाती है!
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जय धर्ममुक्त #dharmamukt
© Kashmir Singh Sagar Dharmamukt