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#PhoolanDevi #DeathAnniversary
25 जुलाई 2001 फूलन देवी की पुण्यस्मृति पर नमन है-
"एक थी फूलन"....

फूलन देवी का नाम आते ही शरीर के रोएं फूट पड़ते हैं। एक अजीब तरह का अहसास होता है फूलन देवी का नाम लेने पर क्योकि बचपन मे जब मैं कोलकाता में था तो फूलन देवी के बीहड़ के कारनामों की तूती बोलती थी।"

फूलन देवी कहती है कानून मेरी मुट्ठी में" सहित कई -कई फिल्में फूलन देवी पर बन चुकी थीं। फ़िल्म "बैंडिड क्वीन" ने भी फूलन की व्यथा कथा समाज के समक्ष रखी है जो बहुत बाद में आई लेकिन वह दौर जब फूलन देवी चंबल के बीहड़ो में जीवन यापन कर रही थीं उनके बारे में जो प्रचारित किया गया वह अलग था जबकि यथार्थ बिल्कुल अलग जो उनके नजदीक जाने या बीहड़ से बाहर आने के बाद दुनिया जान सकी।

मेरा निश्चित मत है कि फूलन देवी को एक आदर्श नारी चरित्र कहा जा सकता है जिसने पढ़ाई-लिखाई न होने के बावजूद मनुवाद और मनुवादी संस्कृति को न केवल नकारा बल्कि इसे तार-तार कर स्त्री अस्मिता की अलग ही आधारशिला रखी।

मनुस्मृति कहती है कि स्त्री का अपना अलग कोई अस्तित्व नही है। स्त्री और उसमे में भी वर्णवार स्त्री का शोषण बहुत ही वीभत्स है। स्त्री का अपना कोई अस्तित्व नही है मनु विधान में जिस नाते इंतजाम है कि शूद्र स्त्री है तो उसका भोग कोई कर सकता है, वैश्य है तो शूद्र पुरुष छोड़कर, क्षत्रिय है तो शूद्र और वैश्य छोड़कर, ब्राह्मण है तो केवल ब्राह्मण उसका भोग करेगा।

फूलन के साथ भी मनुविधान दुहराया गया और सामूहिक रूप से फूलन की अस्मिता तार-तार की गई लेकिन वाह रे फूलन, आपने इसे संयोग, परम्परा, त्रासदी, सामंती रुआब, मनुवादी विधान, गरीबी का अभिशाप, जातिगत इंतजाम न मानकर खुलेआम विद्रोह कर भारतीय संविधान को तार-तार करने वालो या संवैधानिक इंतजामो को अपना दास बनाके रखने वालों का जबाब ईंट के बदले पत्थर से दिया।

फूलन देवी ने प्रतिकार का जो स्वरूप अख्तियार किया वह सभ्य समाज मे अस्वीकार्य है लेकिन क्या फूलन के साथ जो हुवा वह सभ्य समाज मे स्वीकार्य है?

मैं कहूंगा कि दोनों ही बातें जब सभ्य समाज मे स्वीकार्य नही हैं तो हर क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया की वैज्ञानिक थ्योरी ने काम किया और फूलन ने खुद की अस्मत तार-तार करने वालो को जीवन से तार-तार कर एक नए तरह का इतिहास रच डाला।

एक एकलब्य था जिससे पुरातन कथाओं में अंगूठा ले लेने का दृष्टांत है। एकलब्य को बिन पढ़ाये द्रोण ने गुरु दक्षिणा के नाम पर धनुष चलाने में प्रयुक्त होने वाला अंगूठा कटवा लिया था. एकलब्य भी हंसते हुए अंगूठा दान कर दिया था।

इसी परंपरा को हजार वर्ष बाद निबाहने की कुचेष्टा जब बेहमई में हुई तो इस अबला फूलन ने उस वक्त रोते-बिलखते खुद की अस्मत लुट जाने दी लेकिन एकलब्य की तरह इसे स्वीकारा नही बल्कि यह अपमान उसे ज्वाला मुखी बना डाला जिसके फूटे हुए लावों में यह पूरी परम्परा झुलस के रह गयी।

पुरुषवादी और मनुवादी सोच ने फूलन को डकैत, हत्यारा और न जाने क्या-क्या कहा? हम सब फूलन के बारे में पता नही क्या-क्या धारणाएं बना लिए लेकिन फूलन ने सामन्तवाद, मनुवाद को ऐसे झकझोरा कि कई दशक तक फूलन के नाम लेने मात्र से मनुविधान मानने व चलाने वालों के रोएं फूटते रहे।

फूलन देवी के आत्म समर्पण के बाद उनकी जेलयात्रा और फिर लोकशाही में मजबूत हिस्सेदारी फूलन देवी के जीवन यात्रा को तीन भागों में बांट देता है।

एक बेहमई इलाके की निषाद की भोली-भाली,अपढ़,गरीब बेटी फूलन जिसका शील भंग किया जाता है, दूसरी अपने अपमान का बदला लेने के लिए बिद्रोही वीर बाला फूलन देवी और तीसरी सभ्य समाज के बीच आकर संसदीय जीवन जीने वाली सांसद फूलन देवी।

फूलन देवी जी जब सांसद थी तो वे मेरे जनपद देवरिया में चुनावी सभाओ को करने आई थीं। मैं तब समाजवादी पार्टी का जिला प्रवक्ता व मीडिया प्रभारी हुवा करता था। मैंने उस फूलन को जिसे बचपन में फिल्मों, काल्पनिक कथाओं,अखबारों आदि में पढ़कर एक क्रूर महिला के रूप में जाना था, नजदीक रहने, साथ सभाएं करने पर देखा कि वह मानवीय पहलुओं पर मोम सरीखी तो सामाजिक कुरीतियों, अपमानजनक कार्यो पर चट्टान सरीखी थीं।

फूलन देवी जब दुनियावी छल-प्रपंच को नही समझती थी तो उनकी अस्मत को इस सभ्य समाज ने छलनी किया, जब वे बगावत छोड़के फिर सभ्य समाज के आंगन दिल्ली के सांसद निवास आईं तो इस तथा कथित सभ्य समाज ने उनके शरीर को गोलियों से आज 25 जुलाई 2001 को छलनी कर दिया।

इन दोनों स्थितियों को देखते हुए क्या यह कहना सही नही होगा कि फूलन का वही रूप बढ़िया था जिसमे वह डकैत, आततायी या हत्यारी थी.

कम से कम इतना तो उस रूप में था कि यह सभ्य समाज तब न फूलन को छू सकता था, न आंख दिखा सकता था और न मार सकता था।

मुझे याद है अखबारों में छपा एक वाकया जो कुछ इस कदर था। फूलन जी ट्रेन से यात्रा कर रही थीं लेकिन वे टिकट नही बनवा सकी थीं।

ट्रेन में टिकट चेकिंग करते हुए जब टीटी फूलन देवी जी के पास पंहुचा तो उसने उनसे टिकट मांगा। फूलन जी ने कहा कि टिकट नही है, टिकट बना दो।

टीटी ने टिकट बनाने के लिए जब नाम पूछा तो उन्होंने ज्योही अपना नाम फूलन देवी बताया, टीटी भाग खड़ा हुआ और स्टेशन से स्टेशन मास्टर व जीआरपी के जवानों के साथ कूपे में वापस लौटा।

स्टेशन मास्टर और जीआरपी को देखकर फूलन जी ने मामला जानना चाहा तो स्टेशन मास्टर ने कहा कि आप फूलन देवी हैं?

फूलन जी के हॉ कहने पर उसने टीटी द्वारा उन लोगो को बुलाने का प्रयोजन बताया। फूलन जी ने कहा कि आपलोगो के आने का क्या काम, मैने तो इन्हें टिकट बनाने को कह दिया था।

फूलन देवी के नाम का ऐसा हनक था लेकिन चंबल की फूलन बनने से पूर्व भी फूलन अस्मत लूटने के बाद मन से मारी गयी और बीहड़ छोड़ने के बाद शरीर से।

इस भारतीय सभ्य समाज ने एक बहादुर नारी को बर्दाश्त नही किया और 25 जुलाई को नृशंस हत्या कर उन्हें शरीर से भले मार डाला लेकिन फूलन को ऐतिहासिक पात्र बनने से कोई मनुवाद रोक नही सकता है।
बहादुर नारी फूलन देवी को उनकी पुण्यतिथि पर नमन है.....
साभार

Chandra Bhushan Singh Yadav is a Contributing Editor of magazine Socialist Factor and a renowned author, humanist and social justice agenda setter.