अयोध्या काण्ड - एक आपबीती - पार्ट -1
May 24, 2017
अक्सर युवाओं में अयोध्या कांड को लेकर बहुत उत्सुकता रहती है। आज एक कार सेवक के तौर पर अपना वास्तविक अनुभव रिपोस्ट कर आपसे साझा कर रहा हूँ।
ये तब की बात है जब मैं इंटरमीडियट का छात्र था। पुराने लखनऊ के एक मोहल्ले में किराये पर रहने रहने वाले हमारे परिवार के मुखिया पूज्य पिताजी ने शहर के किनारे बस रही नई बस्ती में किस्तों में एक प्लाट लेकर बिना प्लास्टर के दो कमरे का मकान खड़ा कर लिया था। जिसमे हम भाई -बहन और माता -पिता और और नए बने पड़ोसियों से अकसर एक दूसरे के घर की कोई ख़ास डिश या कमी पड़ने पर शक्कर /नमक या किसी मेहमान के आने पर कुर्सी /फोल्डिंग पलंग मांग कर अपना रिश्ता मजबूत कर रहे थे। कौन किस जात का है,किस धर्म का है ? कभी किसी को ये ख्याल भी नही आता था। धर्म जाती का यदि कोई भेद था तो वो कभी उभर नहीं पाया था।
फिर आया राम मंदिर आन्दोलन जिसका उद्देश्य वीपी सिंह द्वारा मंडल कमीशन लागू करने के फलस्वरूप पहली बार एक प्लेटफार्म पर एकत्र हुए पिछड़े वर्ग के लोगों को फोड़ना तथा राजनीति में बीजेपी को स्वतंत्र रूप से स्थापित करना था।
साध्वी ऋतंभरा और उमा भारती के भाषण के कैसेट बाँट कर माहौल बनाया जा रहा था।ठीक उसी तरह जैसे आजकल व्हाट्सएप मैसेज से बनाया जाता है।अक्तूबर 1990 के आखिरी दिनों की बात है। एक दिन शहर में अटल जी का भाषण था।जिसे सुनकर मात्र 16 साल की बाली उम्र में हमने भी भगत सिंह और सुभाष चन्द्र बोस से प्रेरित होकर कार सेवा के लिए अपना घर छोड़ दिया।
हमको बरगला करके अयोध्या कूच करने वाले हमारे भाजपाई नेताओं ने शहर की सीमा ख़त्म होते ही पत्रकारों के सामने फोटो खिंचा कर अपनी गिरफ्तारी दे दी और अपने कर्तव्य को पूर्ण मान लिया। अब बचे हम पाँच जुनूनी मित्र जो चंद्रशेखर आजाद की तरह मरने यकीन करते थे न कि,गिरफ्तारी में क्योंकि ,हम सुबह कसरत करने तथा खेलने के लिए कुछ दिन संघ की शाखा ज्वाईन की थी। जहाँ एक धीमे ज़हर की तरह हमारे दिमाग में ठूंस -ठूंस कर ये भर दिया गया था कि, आगामी 50 वर्षों में मुसलामानों की बढती जनसंख्या को देखते हुए हिन्दू धर्म विलुप्त हो जायेगा।
सो हम मतवाले (मूर्ख कहिये ) अपने माता -पिता को रोता छोड़ पैदल ही अयोध्या की और बढ़ चले।चिनहट (लखनऊ )सीमा पर पुलिस की बैरोकेटिंग थी। जहाँ हमको बरगलाने वाले भाजपाई नेता जब जमीन पर बैठ कर धरना देने की नौटंकी कर रहे थे। उसी समय हम लोग दाहिनी और सड़क पर सरकंडे के जंगल में छुप कर भाग निकलने में कामयाब हो गए।
दिशाहीन हो भटकते -भटकते शाम हो गयी तो पता चला कि हम लोग हैदर गढ़ पहुँच चुके हैं।जो उल्टी तरफ याने सुल्तानपुर की तरफ जाता है न कि फैजाबाद । जाड़े के दिन थे थके-हारे हम लोग एक गाँव में पहुंचे। पुआल के ढेर पर ढेर होने से पहले सामने वाले घर से हमने भोजन की मांग की तो तुरंत एक मित्र ने मना कर दिया क्योंकि ,हम लोगो को ये सिखा कर भेजा गया था किसी यादव या कुर्मी के घर का न खाना।जहर मिला सकता है।तात्कालिक मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और कुर्मी बाहुल्य बाराबंकी के बेनी प्रसाद वर्मा की जाति को इस कदर दुष्प्रचार का शिकार होना पड़ा था।
बमुश्किल दो घंटे ही सो पाए थे कि गाँव में शोर उठा पुलिस आई है भागो और हम लोग रात के अँधेरे में दिशा पूछ कर भाग निकले।गाँव के बाहर एक उपनदी थी सो ठिठकना पड़ा।फिर सोंचा जब सर पे कफ़न बाँध ही लिया है तो इस नदी डूबना ही सही। कपडे उतार कर घुस गए।गनीमत थी पानी छाती तक ही था इसलिए आराम से पार हो गए।सर्दी के मारे बुरा हाल था। फिर भी दो घंटे चलने के बाद एक खलियान में पूआल नज़र आ गया। वही हमरा ओढना और वही बिछौना बन गया।
एक लम्बी बेहोशी की नींद के बाद हमने ये तय किया अब हम पुलिस से बचने के लिए सड़क मार्ग न चुनकर रेलवे ट्रैक पर चलेंगे। जो एक सही फैसला था।उस समय मेरे पैरों में फैशनेवल लकड़ी की ऊँची एड़ी वाले पिंडली तक चैन से बंद होने वाले गम बूट थे। जिसे मैंने कुछ किलोमीटर चलने के बाद अपने गमछे से बांध कर कंधे पर लटका लिया और आगे का सफ़र आसान कर लिया।दोपहर बाद भूँख के मारे फिर बुरा हाल। रुदौली में हमें एक परिवार ने तहरी खिलाई और ताज़ा दुहा हुआ कच्चा दूध पीने को दिया। तब हमारा आगे का सफ़र मुमकिन हो पाया।
फैजाबाद जिला शुरू होने के समय हमारी संख्या बढ़ कर कई सौ हो गई थी।उसमे पश्चिम यूपी ,हरियाणा ,जम्मू ,पंजाब के लोग अधिक थे।अब हर गाँव में विश्व हिन्दू परिषद द्वारा तरह -तरह के भोजन का इंतजाम था। अगले गाँव तक ट्रैक्टर ट्राली से पहुचाने की सुविधा भी थी।
इधर घर पर हमारे घरवालों का बुरा हाल था। हमें तलाश करने का अभियान चालू था।पुलिस को सूचना दी जा चुकी थी।
खैर, चौथे दिन जब हम अयोध्या पहुंचे तो बड़ा विहंगम दृश्य सामने था। पूरा भारत एक छोटी सी नगरी में दिखाई दे रहा था। किन्तु घोर आश्चर्य का विषय ये था,स्थानीय जनता इससे उदासीन और आशंकित दिखाई दे रही थी।जन्मभूमि के दर्शन के लिए प्रदेश के अनुसार जत्थे कूच कर रहे थे। हमको ये ये कह कर पीछे कर दिया गया कि,यूपी -बिहार वाले दंगा करते हैं।
सब टोलियों में विवादित स्थल की तरफ बढ़ चले। आधे घंटे बाद हम लोग हनुमान गढ़ी तक ही पहुँच पाए थे,कि शोर मच गया। गोली चल गई ।हालांकि गोलियों की आवाज किसी ने नहीं सुनी न किसी ने किसी को गोली खाकर गिरते देखा।सरयू के पुल पर जूते चप्पलों का ढेर लगा हुआ था। भगदड़ में मेरा में एक हाथ ज़ख़्मी हो गया था। अगली सुबह सरयू के तट पर 5 या 7 चिताएं जल रही थी जिनमे से दो बंगाल से आये कोठारी बंधुओं की भी थी। ये कोठारी बंधू कब अयोध्या आये ?किसके साथ आये ? रात में कहाँ रुके ? ये भी आज तक एक रहस्य ही है।
#सत्यार्थ ( एक कार सेवक की जुबानी)
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